बच्चों की पढ़ाई पर भी महंगाई की मार, 30% तक महंगा हुआ स्कूल भेजना

गुरुग्राम । कोरोना काल के बाद 1 अप्रैल से स्कूलों का नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है लेकिन बच्चों को स्कूलों में भेजना अभिभावकों के लिए आर्थिक परेशानी खड़ी कर रहा है. बता दें कि कोरोना महामारी के चलते पिछले दो साल से स्कूल बंद पड़े थे. इस बार स्कूल जाने वाले लगभग सभी छात्रों को जूते खरीदने पड़ रहें हैं.

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इसकी वजह यह है कि बढ़ते हुए बच्चों के जूते छोटे हो गए और जिनके छोटे नही हुए, उनके खराब हो गए. ऐसे में सभी अभिभावकों को अपने बच्चों के लिए जूते खरीदना मजबूरी हो गई है. इसके अलावा प्राइवेट स्कूल संचालकों द्वारा एडमिशन फीस से लेकर मासिक फीस में बढ़ोतरी की गई है. साथ ही महंगाई के चलते छात्रों का बस किराया, वर्दी और जूतों तक के दाम बढ़ गए हैं.

वहीं स्कूली छात्रों के लिए मार्केट में जूतों के दो तरह के ऑप्शन है. मार्केट में Liberty, Relaxo, Lakhani, Spark, Action आदि कंपनियों के ब्रांडेड और डनलप, एशियन आदि कंपनियों के लोकल जूते मिल रहे हैं. लोकल कंपनियों ने पिछले दो साल में 30% तो ब्रांडेड कंपनियों ने 20% दामों में वृद्धि की है. जो आठ नंबर का जूता पहले 90 रुपए का मिलता था उसका दाम बढ़कर 120 रुपए हो गया है.

महेश गाेयल (जूतों के थोक विक्रेता, फरीदाबाद) ने बताया कि स्थानीय स्तर पर जूते बनाने वाली कंपनियों की आर्थिक स्थिति को कोरोना महामारी ने झकझोर कर रख दिया. स्थानीय स्तर के स्कूल शूज बनाने वालों ने अपना कारोबार बंद कर दिया तो इससे बाजार में बड़ी कंपनियों का एकाधिकार भी हो गया है.

आरके धवन (जीएम, लखानी अरमान ग्रुप) का कहना है कि स्कूल शूज के रेट बढ़ाने कंपनियों के लिए मजबूरी है. फिलहाल सभी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं. पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर तो सबकी नजर रहती है मगर शूज तैयार करने के लिए कपड़े का भी इस्तेमाल होता हैं और पिछले दो साल में इस कपड़े की कीमत में 30% की बढ़ोतरी हुई है.

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