आधुनिक जीवनशैली और युवा पीढ़ी पर इसका प्रभाव

वर्तमान समय की अतिव्यस्तता और आधुनिकता ने मनुष्य के जीवन को बदलकर रख दिया है. एक तरफ जहां आज की तकनीकी क्रांति से अत्यंत दुर्लभ चीजों को एक क्लिक पर हल किया जा सकता है वहीं इस तकनीक के अत्यधिक विकास ने मनुष्य को अत्यंत आलसी भी बना दिया है. जिसका सीधा असर उसके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. जीवनशैली और खानपान के कारण होने वाली बीमारियां केवल महानगरों तक सीमित नहीं रही हैं बल्कि इसका विस्तार छोटे शहरों और गांवों तक बहुत तेजी से हुआ है. निश्चित रूप से इंटरनेट ने गांव और शहर के अंतर को बहुत हद तक कम कर दिया है. यही कारण है कि महानगरीय शैली का विस्तार छोटे शहरों में पैर पसारने के बाद गांवों में भी पैठ बना रहा है और इसके साथ ही खानपान तो पहले से ही तेज गति से अपनी जगह बना चुका है. जिसकी बदौलत बीमारी से ग्रसित होने वाले युवाओं की तादाद और अधिक बढ़ रही है.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत में 10 से 24 आयु वर्ग की करीब 23 लाख युवा आबादी हर साल असामायिक मौत की शिकार हो जाती है. वहीं अवसाद आधुनिक जीवनशैली का एक अभिन्न अंग बन चुका है. जिसके चलते लाखों युवा आत्महत्या करते हैं. बीते तीन महीने में दुनिया कितनी बदल गयी है यह तो कोरोना संक्रमण ने सबको दिखा ही दिया है. ऐसी ही अनेकों वायरल बीमारियां वर्तमान जीवनशैली में तेजी से प्रवेश करेंगी यदि हमने अपने लाइफस्टाइल को समय रहते नहीं सुधारा.

तकनीक की इस दुनिया मे बच्चों को भी मोबाइल फोन की लत ने आउटडोर गेम्स से कोसों दूर कर दिया है तथा व्यायाम, योगा जैसी चीजें सिर्फ आयोजनों पर या आर्टिकलों में ही देखने को मिलती हैं. निजी जिंदगी में इनका प्रवेश बहुत कम लोगों तक है. यहां तक कि जंक फूड ही सबका पसंदीदा भोजन है. ऑर्गेनिक चीजों की उपेक्षा युवावर्ग तो विशेष तौर पर कर रहा है जिसका खामियाजा उन्हें खुद की सेहत के साथ खिलवाड़ करके भुगतना पड़ रहा है. इसलिए वर्तमान जीवनशैली के दुष्प्रभावों से बचने के लिए मनुष्य को शारीरिक व्यायाम के साथ साथ अपने खानपान व मानसिक स्वास्थ्य ,नैतिक मूल्यों को भी ऊपर उठाने की सख्त जरूरत है. जिससे इस अतिआधुनिकता पूर्ण जीवनशैली के नकारात्मक दंशों से बचा जा सके.

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