हरियाणा के फोर्टीफाइड चावल उद्यमियों से छीना टेंडर, ‌उद्योगों पर ताले लगने की नौबत

करनाल | सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबों को सस्ते में गेहूं तथा अन्य खाने से संबंधित वस्तुएं प्रदान करवाई जाती है. अब केंद्र सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 1% फोर्टीफाइड चावल को अनिवार्य कर दिया है.  जिसके कारण हरियाणा में अब तक फोर्टीफाइड चावल बनाने के लिए 60 चावल मिल स्थापित हो रही हैं. जिनमें से 30 शुरू भी हो चुकी है.  लेकिन अब केंद्र सरकार ने फोर्टीफाइड चावल देने का टेंडर महाराष्ट्र, पंजाब आदि अन्य राज्यों की कंपनियों को दे दिया है. हरियाणा की फोर्टीफाइड चावल उद्यमियों को नुकसान हो गया है.

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जानिए क्या है, पूरा मामला

आपको बता दें कि अब हरियाणा में फोर्टीफाइड चावल उद्यमियों के उद्योग बंद होने की कगार पर पहुंच गए है. जिसके कारण फोर्टीफाइड चावल उद्यमियों ने बुधवार को शहर में प्रदेश स्तरीय बैठक करके सरकार को 3 दिन का अल्टीमेटम दे दिया है. जिसमें उद्यमियों ने कहा है कि यदि सरकार ने इस समय अवधि के दौरान बाहरी राज्यों की कंपनी के टेंडर निरस्त कर हरियाणा की कंपनियों को नहीं दिए तो वे अपने उद्योगों को ताले लगाकर उनकी चाबियां सरकार को सौंप देंगे.

जानिए चावल उद्यमियों ने क्या जताई, चिंता

शहर के प्रेम प्लाजा में आयोजित हरियाणा एफआरके मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन की बैठक में हरियाणा के विभिन्न‌ जिलों के फोर्टीफाइड चावल मिल मालिकों ने हिस्सा लिया. जिसमें राज्य प्रधान राम निवास बंसल ने कहा कि फोर्टिफाइड चावल की कोई निजी बिक्री नहीं है. इसे सिर्फ सरकार ही खरीदती है, क्योंकि यह पीडीएस के चावल में मिलाकर गरीबों को दिया जाता है. अब तक 30 मिलें शुरू हो चुकी हैं, अन्य 30 एक महीने में शुरू होने वाली हैं. एक मिल को स्थापित करने में करीब तीन से पांच करोड़ रुपये का खर्च आता है. दो हजार परिवारों को रोजगार भी मिला है.

उद्यमियों ने आपूर्ति विभाग पर क्या लगाए आरोप

उन्होंने आरोप लगाया कि हरियाणा के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने जानबूझ कर ऐसी शर्ते रखी हैं. जिससे हरियाणा का कोई उद्यमी इसका टेंडर ना ले पाए. हरियाणा में जो भी फोर्टिफाइड चावल के उद्यम लगे हैं, वह पिछले तीन महीने में लगे हैं, जबकि टेंडर के लिए शर्त एक साल का अनुभव व 65 करोड़ रुपये का टर्नओवर होने की शर्त रखी गई है. हालांकि बाद में टर्नओवर राशि 10 करोड़ कर दी गई.

जानीए हरियाणा और अन्य राज्यों के टेंडर में कितना अंतर

खास बात यह है कि हरियाणा के उद्यम 45 से 50 रुपये प्रति किलो पर टेंडर चाहते हैं, जबकि विभागीय अधिकारियों ने 60 रुपये पर काम करने वाली महाराष्ट्र, पंजाब आदि राज्यों की पांच फर्मों को टेंडर दे दिया है. जिससे सरकार को लगभग 60 करोड़ के सीधे नुकसान के साथ-साथ 18 प्रतिशत जीएसटी का भी नुकसान होगा. उनके अनुसार तीसरा बड़ा नुकसान यह है कि जब फर्में बाहर की हैं तो वह रॉ मैटेरियल (चावल का टुकड़ा) भी अपने राज्यों से ही खरीदेंगी, जिसके कारण हरियाणा के राकेश मिलो का चावल का टुकड़ा भी नहीं बिक पाएगा. जिससे हरियाणा के सभी फोर्टिफाइड उद्यम बंद होने की स्थिति में हैं.

जानिए संरक्षक रमेश मिड्डा ने क्या कहा

संरक्षक रमेश मिड्डा ने कहा कि पंजाब राज्य ने 50 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ ने 70, मध्यप्रदेश ने 50 प्रतिशत टेंडर अपने ही राज्यों के उद्यमों को देने की शर्त रखी है, किंतु हरियाणा ने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी है. जिन बाहरी फर्मों को टेंडर दिए गए हैं, उनमें तीन एक ही व्यक्ति की हैं, जो नियम के खिलाफ है.

इसमें उप प्रधान मनेंद्र सिंह, सचिव सुमित अग्रवाल, दीक्षित गुप्ता, अभिषेक गर्ग, अनुज बंसल, शुभम गर्ग, जॉनी बंसल, रवि गुप्ता, हरजोत सिंह, सुमित गर्ग आदि कई उद्यमी व पदाधिकारी मौजूद रहे.

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