हरियाणा में किसानों के लिए सिरदर्द नहीं बनेगी पराली, किसान इस तरीके से प्रबंधन कर बढ़ा सकेंगे फसल उत्पादन

रोहतक | राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत के राज्यों में पराली जलानें की समस्या से निजात दिलाने की तैयारी शुरू हो गई है. बाबा मस्तनाथ यूनिवर्सिटी रोहतक की डॉ. चंचल मल्होत्रा ने इसका एक अलग तरीका खोज निकाला है. इससे न केवल किसानों को पराली जलानें की समस्या से निजात मिलेगी बल्कि फसल उत्पादन की क्षमता भी बढ़ेगी.

Parali Tractor

डॉ. चंचल मल्होत्रा ने बताया कि उन्होंने खुद इस तरह का एक शोध टमाटर और चावल की फसल पर किया था, जिससे उन्हें टमाटर में 20% और चावल की फसल पर 120% उत्पादन में वृद्धि देखने को मिली है. आगरा के संस्कृति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने इस जानकारी को साझा किया है.

फसलों का बढ़ेगा उत्पादन

उन्होंने बताया कि पराली समाधान न केवल किसानों बल्कि सरकारों के लिए भी सिर दर्द बना हुआ है. वहीं, पराली जलानें से फसलों का उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है. चंचल मल्होत्रा ने बताया कि जिस पराली को फालतू की चीज समझकर जलाया जाता रहा है. अब वही पराली फसलों का उत्पादन बढ़ाने में अहम भूमिका अदा करेगी.

गेहूं व धान की फसल सबसे अधिक सिलिकॉन

डॉ. मल्होत्रा ने बताया कि खेतों में पराली जलानें से मिट्टी में सिलिकॉन की मात्रा बड़ी तेजी से घटती है. दक्षिण भारत के राज्यों में काफी मात्रा में सिलिकॉन खाद का प्रयोग किया जाता है जबकि उत्तर भारत में जागरूकता का अभाव है. सामान्य तौर पर सिलिकॉन मिट्टी में ही पाया जाता है और धान व गेहूं की फसल सबसे अधिक सिलिकॉन मिट्टी से ही शोषित करती है.

पराली में प्रचुर मात्रा में सिलिकॉन

फसल कटाई के बाद बची हुई पराली में प्रचुर मात्रा में सिलिकॉन पाया जाता है. यदि इसे किसी तरीके से नरम बनाकर मिट्टी में मिला दिया जाए तो मिट्टी में सिलिकॉन की कमी नहीं रहेगी. सिलिकॉन को मिट्टी में मिलाने के लिए सिलिकॉन सॉल्युबलाइजेशन बैक्टीरिया का प्रयोग किया जाता है जिससे पराली नरम होकर मिट्टी में आसानी से घुल जाती है. सिलिकॉन खाद के प्रयोग से मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा भी बढ़ती है.

पराली जलाने से मिलेगी निजात

डॉ. चंचल ने बताया कि फसलों में अंधाधुंध रासायनिक छिड़काव से मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा लगातार कम होती जा रही है. ऑर्गेनिक कार्बन से बनी मिट्टी मृत यानि बालू मिट्टी के समान हो जाती है. ऐसे में सिलिकॉन खाद का प्रयोग तीन साल में एक बार करके ही किसान अपने फसल उत्पादन को बढ़ा सकते हैं. इसके साथ ही पराली जलानें की समस्या से निजात मिलेगी तो वहीं वायु प्रदूषण पर भी अंकुश लगा सकते हैं.

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