हरियाणा के छात्र MBBS की पढ़ाई करने के लिए इसलिए जाते हैं विदेश, ये है सबसे बड़ी वजह

चंडीगढ़ । हरियाणा में अन्य राज्यों की तुलना में अधिक फीस है.इसलिए अच्छी रैंक होने के बावजूद उन्हें दूसरे देशों या अन्य राज्यों में कोर्स के लिए जाना पड़ता है. एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए छात्र यूक्रेन, रूस, चीन, फिलीपींस, कजाकिस्तान, जॉर्जिया, किर्गिस्तान, नेपाल और मलेशिया जाते हैं. हरियाणा में एमबीबीएस की ऊंची फीस का असर यह है कि पिछले एक साल में राज्य के छात्र यूक्रेन और चीन चले गए हैं. अकेले यूक्रेन में पिछले साल 500 से ज्यादा बच्चे यहां से एमबीबीएस करने गए थे. इसी तरह चीन में भी हर साल युवा कोर्स के लिए जा रहे हैं. इन देशों में यह डिग्री 16 से 25 लाख में पूरी होती है. जबकि राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में इसकी फीस करीब 40 लाख रुपये है. निजी कॉलेजों में 1 करोड़ से 1.5 करोड़ रुपए चार्ज किए जाते हैं.

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ये है वजह

इससे पहले हरियाणा में एमबीबीएस की फीस 53,000 रुपये सालाना थी. वर्ष 2020 में नई नीति तय कर मनोहर सरकार ने फीस कई गुना बढ़ा दी और एक साल के लिए फीस करीब 10 लाख रुपए तय की. नई नीति के लागू होने से अब बड़ी संख्या में टॉपर बच्चे भी सस्ते अध्ययन के लिए राज्य में प्रवेश लिए बिना दूसरे राज्यों या विदेश जा रहे हैं. अकेले यूक्रेन में 2000 से अधिक बच्चे एमबीबीएस कर रहे थे जो रूसी आक्रमण के बाद यूक्रेन से लौटे हैं. बच्चों के विदेश जाने से राज्य का पैसा भी जा रहा है. हालांकि, एमबीबीएस कोर्स करने वाले छात्रों के लिए राज्य सरकार द्वारा ऋण की व्यवस्था की गई है. यदि उम्मीदवार अपनी पढ़ाई और इंटर्नशिप पूरा करने के बाद सरकारी नौकरी के लिए चयनित हो जाता है, तो सरकार उसके ऋण की किश्तों का भुगतान करेगी. इसमें मूलधन और ब्याज शामिल होगा.

Mbbs छात्रों ने कहा ‘नीति पर विचार करे सरकार

यूक्रेन में पढ़ने वाले अमित ने बताया कि हरियाणा में अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा फीस है. इसलिए अच्छी रैंक होने के बावजूद उन्हें दूसरे देशों या राज्यों में कोर्स के लिए जाना पड़ता है. वहीं दूसरे राज्यों में पढ़ने वाले तरुण और अमृत ने कहा कि राज्य सरकार को इस नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए. साथ ही निजी कॉलेजों की फीस पर भी नियंत्रण किया जाए.यहां एक करोड़ रुपए तक लिए जा रहे हैं.

केवल 13 मेडिकल कॉलेज, 1850 सीटे

हरियाणा में 5 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं. इनके अलावा, एक सरकारी सहायता प्राप्त और सात निजी मेडिकल कॉलेज हैं.राज्य में कुल 1850 सीटें हैं. हालांकि, राज्य में हर साल लाखों युवा नीट का पेपर देते हैं. मेडिकल क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि आउटगोइंग स्टूडेंट्स में ज्यादातर ऐसे हैं जिनकी रैंक कम है या अच्छी रैंक होने के बावजूद आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है.

2025 तक 3035 एमबीबीएस सीटें होगी

सीएम खट्टर का कहना है क्या हमारी सरकार की प्राथमिकता है कि हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज हो.इस दिशा में तेजी से काम किया जा रहा है.एमबीबीएस की सीटें भी पहले के मुकाबले बढ़ाई गई हैं. प्रधानमंत्री ने निजी मेडिकल कॉलेजों से फीस कम करने की अपील की है, ताकि युवाओं को पढ़ाई के लिए बाहर न जाना पड़े. साल 2025 तक एमबीबीएस की 3035 सीटें हो जाएंगी.

हिसार के इकलौते मेडिकल कॉलेज में सिर्फ 100 सीटें

हिसार में हिसार संभाग के पांच जिलों के छात्रों के लिए चिकित्सा शिक्षा के लिए केवल एक कॉलेज है. यहां भी केवल 100 एमबीबीएस सीटें ही उपलब्ध हैं. हिसार जिले में तीन विश्वविद्यालय होने के बावजूद मेडिकल कॉलेजों की संख्या नहीं बढ़ाई जा सकी. जिससे भावी डॉक्टर कर्ज का बोझ उठाकर मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश जाने को मजबूर हैं.

बजट की घोषणा के बावजूद नही हुआ कार्य

राज्य के बजट में घोषणा के बावजूद सिरसा, भिवानी, फतेहाबाद और चरखी दादरी जिलों में मेडिकल कॉलेजों का निर्माण अभी तक पूरा नहीं हुआ है. राज्य के बजट में हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा के बावजूद सिरसा और भिवानी जिलों में मेडिकल कॉलेजों का निर्माण कार्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है. चरखी दादरी और फतेहाबाद जिलों में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की प्रक्रिया अभी फाइलों में शुरू भी नहीं हुई है.

केवल इतने छात्रों को मिलता प्रवेश

मेडिकल साइंस के 12वीं पास छात्रों में से केवल 30% को ही एमबीबीएस में प्रवेश मिल रहा है,पिछले साल हरियाणा बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन से 33749 स्टूडेंट्स ने 12वीं की साइंस की परीक्षा पास की थी. इसी तरह सीबीएसई से भी हजारों छात्र पास हुए.मेडिकल कॉलेजों में सीटों की कमी के कारण हजारों छात्र प्रवेश नहीं ले पा रहे हैं. हिसार जिले से हर साल करीब 5 हजार छात्र 12वीं मेडिकल साइंस से पास करते हैं.इसमें 95 फीसदी का लक्ष्य एमबीबीएस में दाखिले का है.

एमबीबीएस में 25 से 30 छात्रों को ही प्रवेश मिलता है.एमबीबीएस में दाखिले के लिए हिसार के छात्र कोटा, दिल्ली, राजस्थान में कोचिंग के लिए जाते हैं.कुछ माता-पिता अपने बच्चों को आठवीं-नौवीं कक्षा से एमबीबीएस में प्रवेश के लिए कोचिंग देना शुरू कर देते हैं.सिरसा जिले से भी हर साल करीब 10 हजार मेडिकल छात्र बाहर आते हैं. वहीं, भिवानी जिले में पिछले साल हरियाणा बोर्ड से करीब चार हजार विज्ञान के छात्र थे. इसी तरह सीबीएसई बोर्ड के करीब 1300 छात्रों ने मेडिकल फैकल्टी से 12वीं की परीक्षा पास की.पंडित नेकीराम शर्मा के नाम पर बनने वाला मेडिकल कॉलेज निर्माणाधीन है.

वहीं, फतेहाबाद जिले में हर साल एक हजार से ज्यादा छात्र मेडिकल की तैयारी करते हैं. इनमें से दस प्रतिशत छात्र चिकित्सा की पढ़ाई के लिए यूक्रेन और चीन जैसे देशों में जाते हैं.चरखी दादरी जिले में हर साल औसतन 700 छात्र मेडिकल फैकल्टी से स्कूली शिक्षा पूरी करते हैं.इन छात्रों के लिए जिले में मेडिकल कॉलेज की कोई सुविधा नहीं है.

पीजीआईएमएस रोहतक में 250 एमबीबीएस सीटें

रोहतक जिले में, हरियाणा और सीबीएसई बोर्ड से अनुमानित 20 हजार से अधिक छात्र 12 वीं की परीक्षा में शामिल होते हैं. इसमें से विज्ञान के दो से तीन हजार छात्र हैं. चिकित्सा शिक्षा का केंद्र कहे जाने वाले रोहतक में पीजीआईएमएस में 250 एमबीबीएस सीटें, बाबा मस्तनाथ आयुर्वेद विश्वविद्यालय में 60 बीएएमएस सीटें और पीजीआईडीएस में 100 बीडीएस सीटें हैं. इसके कारण अधिकांश छात्र हर साल अपनी चिकित्सा शिक्षा के लिए विदेश जाने को मजबूर होते हैं.

भारत भूषण बत्रा( विधायक, रोहतक ) का कहना है कि देश में मेडिकल कॉलेजों की कमी है. मुख्यमंत्री ने हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा की थी. जिला ऐसा नहीं है, यह भी कोरी घोषणा साबित हुई. अब बच्चे यूक्रेन से वापस आ गए हैं, सरकार उन्हें राज्य के मेडिकल कॉलेजों में जगह दे और उन्हें स्थापित किया जाए ताकि वे अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें .

महेंद्रगढ़ एजुकेशन हब पर नहीं है मेडिकल कॉलेज

महेंद्रगढ़ जिला राज्य में शिक्षा का केंद्र माना जाता है, लेकिन मेडिकल कॉलेज न होने के कारण छात्रों को मेडिकल की पढ़ाई के लिए बाहर जाना पड़ता है.शिक्षाविद् राजेंद्र यादव ने बताया कि जिले से हर साल 1500 से ज्यादा छात्र नीट क्वालिफाई करते हैं, जिनमें से 100 छात्रों को सरकारी मेडिकल कॉलेज मिलता है.यूक्रेन, रूस, चीन, यूएसएस, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में प्रति वर्ष औसतन 100 छात्र चिकित्सा अध्ययन के लिए जाते हैं.रेवाड़ी में कोई मेडिकल कॉलेज नहीं है. सूत्रों के मुताबिक, मेडिकल के छात्र आसपास के शहरों और विदेशों में पढ़ रहे हैं.इसके अलावा जिले के विज्ञान संकाय में करीब 1037 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं.

झज्जर : हर साल 500 छात्र प्रवेश से वंचित, सरकारी मेडिकल कॉलेज की जरूरत

वर्ल्ड मेडिकल कॉलेज, झज्ज जिले में, गिरवाड़ में है.इसमें 100 एमबीबीएस सीटें हैं. हर साल लगभग 500 छात्रों को प्रवेश से वंचित कर दिया जाता है. जिले से हर साल 20 से 25 छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश जाते हैं.जिले में हर साल करीब 24 हजार बच्चे बारहवीं कक्षा पास करते हैं हर साल करीब पांच से छह हजार बच्चे नीट की परीक्षा देते हैं.जिले में सरकारी मेडिकल कॉलेज के अभाव में बच्चों को दवा की पढ़ाई के लिए दूसरे राज्यों, जिलों और विदेशों में जाना पड़ता है.

सोनीपत के इकलौते मेडिकल कॉलेज में दाखिले की लड़ाई
रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग के बीच पैदा हुए हालात को देखते हुए यूक्रेन से मेडिकल के छात्र स्वदेश लौट गए हैं. ये छात्र अब देश के कॉलेजों में मेडिसिन की पढ़ाई करना चाहेंगे. ऐसे में अब देश में एमबीबीएस कोर्स करने की होड़ लगेगी.

सोनीपत जिले के गोहाना के ग्राम खानपुर कलां स्थित बीपीएस राजकीय महिला चिकित्सा महाविद्यालय में एमबीबीएस की 120 सीटें हैं.मेडिकल कॉलेज के 21 विभागों में शामिल इन सीटों पर दाखिले के लिए हर साल लड़ाई होती है. ऐसे में हर साल करीब 500 छात्रों को एमबीबीएस की डिग्री लेने के लिए विदेश जाना पड़ता है.

डॉ राजकुमार नरवाल, करियर काउंसलर विशेषज्ञ, का कहना है कि दूसरे देशों में एमबीबीएस करने वाले छात्रों को इस डिग्री के बाद भारत आना होता है और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की परीक्षा पास करनी होती हैहै. मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाई जाए. सरकार ने हर जिला स्तर पर मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा की है, जिसे जल्द पूरा किया जाए.

डॉ. अलका छाबड़ा, निदेशक, (अग्रोहा मेडिकल कॉलेज, हिसार ) का कहना है कि अग्रोहा मेडिकल कॉलेज में एमबीबीसी की 100 सीटें उपलब्ध हैं. एडमिशन नीट के जरिए होता है. मेडिकल कॉलेज में एमडी और एमएस की 36 सीटें उपलब्ध हैं.डीएनबी की 36 सीटों पर दाखिले हो रहे हैं.इसके अलावा बीएससी नर्सिंग के कोर्स उपलब्ध हैं.

जिले में हर साल करीब 5000 छात्र नीट के लिए आवेदन करते हैं. जबकि मेडिकल कॉलेज में 120 सीटें ही शामिल हैं.इन सीटों पर प्रवेश के लिए अन्य राज्यों के छात्रों का भी चयन किया जाता है. इस कारण अधिकांश छात्रों को प्रवेश नहीं मिल पाता है छात्र सोनीपत से एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए यूक्रेन, रूस, चीन, फिलीपींस, कजाकिस्तान, जॉर्जिया, किर्गिस्तान, नेपाल और मलेशिया जाते हैं.

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