मुनाफ़ा: कम पानी में शानदार फसल उगाकर लाखों कमाते हैं हरियाणा के किसान मंजीत, अपनाते हैं फसल चक्र

जींद । जो किसान सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम होने के बावजूद धान की खेती करते हैं और भूमि के पानी का अंधाधुंध दोहन करते हैं, ऐसे किसान खरकरामजी गांव के प्रगतिशील किसान मंजीत सिंह से प्रेरणा ले सकते हैं. फसलों की अच्छी पैदावार ले सकते हैं इसमें धान की फसल की तुलना में लागत कम है और आमदनी ज्यादा है.

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कम पानी देकर शानदार खेती करनेवाले किसान मंजीत जैविक तरीके से खेती कर रहे हैं. सिंचाई के लिए पर्यप्त पानी नहीं है, इस वजह से कभी धान की खेती के बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं. उनके पास दो एकड़ जमीन है, जिसमें हर साल बदल-  बदलकर अलग अलग फसलों की पैदावार लेते हैं. पिछले साल एक एकड़ में कंगनी लगाई, इससे करीब 80 हज़ार का उत्पादन हुआ. एक बार भी सिंचाई नहीं करनी पड़ी और ख़र्चा भी कम आया.

किसान मंजीत सिंह ने बताया है कि वे कम पानी वाली फसलों का उत्पादन करते हैं. इसमें कंगनी है, रागी, शामक, सरसों जैसी फसलें सम्मलित हैं. वहीं गेहूं की फसल के साथ धनिया की फसल भी लेते हैं. इससे अच्छा उत्पादन होता है.

कैसे कमाए 80 हजार रुपये?

कम पानी की लागत में अच्छी फसल उगाने वाले मंजीत ने बताया कि उन्होंने पिछली साल कंगनी और राखी की फसल उगाई. यह फसल पौष्टिक होती है. यह बहुत कम पानी में तैयार होने वाली फसल है. कंगनी की बिजाई मई के अंत से जून के अंत तक होती है. यह करीब 120 दिन में पककर के तैयार हो जाती है. इस फसल का प्रति एकड़ जमीन में पांच से छह क्विंटल उत्पादन हो जाता है. बाजार में कंगनी के रेट 140 रुपये किलो है. इससे प्रति एकड़ जमीन में 70 से 80 हजार रुपये की फसल हो जाती है.

गतवर्ष न खाद डाली और न सिंचाई

किसान मंजीत ने बताया कि पिछले साल उसने कंगनी की फसल लगाई थी और बिजाई के बाद एक बार भी सिंचाई नहीं की. ऐसे में खाद भी नहीं डाली. बारिश से ही काम चल गया था. केवल दो बार निराई और गुड़ाई की थी. जिससे फसल में लागत भी कम आयी थी. शामक पशु चारे में काम आता है. इसमें भी पानी की खपत कम होती है और फसल जल्दी तैयार होती है.

फसल चक्र अपनाते हैं किसान मंजीत

मंजीत किसान ने इस साल खेत में हरी खाद के लिए ढेंगा उगाकर जमीन में मिला दिया और अब जमीन को खाली छोड़ दिया है. ताकि जमीन को ताकत मिल सके. वो दो महीने बाद सरसों की बिजाई करेंगे. एक बार सरसों की फसल लेने के बाद अगली बार कोई अन्य फसल ले लेंगे ताकि फसल चक्र चलता रहे और जमीन की उर्वरा शक्ति बनी रहे. मंजीत सिंह ने बताया है कि वे ऐसी फसलों को पहले उगाते हैं जो सीधे तौर पर खाने के काम आ सके.

कंगनी की है मेडिसिनल वैल्यू

पिल्लूखेड़ा के खंड कृषि विकास अधिकारी डॉ सुभाष चंद्र बताते हैं कि कंगनी फसल की मेडिसिनल वैल्यू है. ये देशी दवाइयों के प्रयोग में लाई जाती है और पंसारी के यहाँ मीलती है. अगर किसान इसकी ब्रांडिंग करने में सक्षम है तो बहुत अच्छे रेट भी मिल सकते हैं. इसमें दूसरी फसलों की तुलना में लागत भी कम आती है और आमदनी भी इससे ज्यादा होती है. इसमें ज्यादा बीमारियां नहीं आती हैं. यह कम पानी वाली फसल है. यहां आसपास के क्षेत्र में कंगनी की खेती करने वाला मंजीत अकेले किसान हैं, जो सूझबूझ से खेती कर अच्छी आमदनी कमा लेते हैं. मंजीत अलग-  अलग तरह की खेती करते हैं और फसल चक्र अपनाकर खूब पैसे कमाते हैं.

गौरतलब है कम लागत में अधिक मुनाफ़ा कमाने वाले मंजीत धान की खेती करते ही नहीं क्योंकि इसमें पानी की लागत ज्यादा आती है. किसान मंजीत खाद का प्रयोग नहीं करते, जैविक खेती करते हैं. इसमें लागत काफी कम आती है और प्रति एकड़ 80 हज़ार रुपये कमाते हैं.

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