Swami Vivekananda: संघर्ष से भरा रहा स्वामी विवेकानंद का जीवन, फिर भी नहीं मानी हार

चंडीगढ़ | आज पूरा देश भारतीय दार्शनिक स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि मना रहा है. 4 जुलाई 1902 को कोलकाता में केवल 39 वर्ष की आयु में उनका पंचतत्वों में विलय हो गया, लेकिन कई विचारों को पीछे छोड़ दिया. आज भी युवा उन्हीं विचारों को अपने जीवन में उतारते हैं. युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद ने महज 25 साल की उम्र में संन्यास का रास्ता चुना था. विवेकानंद का हिंदू धर्म और आध्यात्मिकता से गहरा लगाव था. उनके गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था.स्वामी उनसे तब मिले जब वे भगवान को खोज रहे थे. आइए जानते हैं उनकी पुण्यतिथि पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें…

sawami vivekanand

देश के आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद का जन्म 21 जनवरी 1863 को कलकत्ता की कायस्थ जाति में नरेंद्र नाथ दत्त के रूप में हुआ था. वह एक उच्च-मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए एक पश्चिमी शैली के विश्वविद्यालय में भेजा गया, जहाँ उन्हें पश्चिमी दर्शनशास्त्र, विज्ञान आदि की जानकारी दी गई. स्वामी विवेकानंद बचपन से ही तेज बुद्धि के व्यक्ति थे.

हिंदू धर्म और अध्यात्म से गहरा लगाव

स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था. उन्होंने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. जल्द ही वह रामकृष्ण के सबसे प्रसिद्ध शिष्यों में से एक बन गए. वह ब्रह्म समाज में शामिल हो गए जिसका उद्देश्य बाल विवाह और निरक्षरता को खत्म करना और निम्न वर्गों और महिलाओं के बीच शिक्षा लाना था. विवेकानंद का हिंदू धर्म और अध्यात्म से गहरा लगाव था. जब वे भगवान की खोज कर रहे थे तब स्वामी उनसे मिले.

पिता की मृत्यु और परिवार की जिम्मेदारी

समाज सुधार स्वामी विवेकानंद के विचारों का एक अभिन्न अंग बन गया था. 1884 में अपने पिता की मृत्यु के बाद नरेंद्रनाथ यानी स्वामी विवेकानंद को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा..उन्होंने रामकृष्ण से उनकी हालत में सुधार के लिए प्रार्थना करने को कहा. रामकृष्ण परमहंस ने उनसे कहा कि उन्हें स्वयं जाकर प्रार्थना करनी चाहिए. स्वामी ने वैसा ही किया और प्रार्थना करने के लिए मंदिर पहुंचे और अपने लिए विवेक और वैराग्य मांगा. उस दिन से नरेंद्रनाथ एक तपस्वी के जीवन की ओर आकर्षित हो गए.

विश्व धर्म संसद और विवेकानंद

घूमते-घूमते स्वामी को विश्व धर्म संसद के बारे में पता चला. 1893 में शिकागो, अमेरिका में विश्व धर्म संसद का आयोजन होना था. स्वामी विवेकानंद की इच्छा थी कि वे विश्व धर्म संसद में भाग लें और भारत और अपने गुरु के विचारों को दुनिया के सामने ले जाएं. हालांकि शिकागो पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था लेकिन उनके संकल्प ने उनका पीछा नहीं छोड़ा.

विवेकानंद को दर्शकों से मिला स्टैंडिंग ओवेशन

जब विवेकानंद ने माई ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका जैसे शब्दों के साथ अपना भाषण दिया, तो पूरे दर्शकों ने खड़े होकर उनकी सराहना की. वह अगले दो साल तक अमेरिका में रहे और 1894 में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की. इसके साथ ही उन्होंने यूनाइटेड किंगडम की यात्रा की जहां उन्होंने वेदांत और हिंदू आध्यात्मिकता के सिद्धांतों के बारे में प्रचार किया.

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