सतीश कौशिक का ये सपना रह गया अधूरा, जानें हरियाणा से मुंबई तक के सफर की दिलचस्प कहानी

महेन्द्रगढ़ | हरियाणा के नारनौल क्षेत्र के कनीना कस्बे से सटे धनौंदा गांव में जन्में निदेशक और मशहूर अभिनेता सतीश कौशिक की मौत की खबर ने हर किसी को सुन्न कर दिया. लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा है कि वो अब इस दुनिया में नहीं रहें. हिंदी फिल्मों में अपनी कॉमेडी की बदौलत हर किसी के दिल पर राज करने वाले सतीश कौशिक भले ही मुंबई में रहते थे लेकिन अपनी जड़ों को कभी भी नहीं भूलें. वो साल में दो बार कनीना- अटेली रोड़ स्थित महासर माता मंदिर में पूजा करने जरूर आते थे.

Satish Kaushik

हरियाणा और हरियाणवियों के लिए कुछ करने की चाहत हमेशा से ही उनके मन में थी. इंडियाज मोस्ट वांटेड की तर्ज पर हरियाणा के मोस्टवांटेड सीरियल बनाने की योजना पर वो लगातार आगे बढ़ रहें थे. इस प्रोजेक्ट को शुरू करने की तैयारियां शुरू हो रही थी लेकिन उनके दुनिया को अलविदा कहने से यह प्रोजेक्ट अधर में लटक गया है. हरियाणा कला परिषद के निदेशक महेंद्रगढ़ के रहने वाले अनिल कौशिक ने बताया कि सतीश कौशिक से इस विषय पर लगातार विचार विमर्श चल रहा था.

हरियाणा के लिए कुछ बड़ा करने की थी तमन्ना

सतीश कौशिक का बचपन उनके पैतृक गांव धनौंदा में ही बीता है. एक इंटरव्यू में कोरोना काल से उभरने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की उन्होंने जमकर तारीफ की थी. उन्होंने महेन्द्रगढ़ और हरियाणा के लिए बहुत कुछ करने की तमन्ना जाहिर की थी लेकिन उनकी मौत से सब अधूरा रह गया है.

कौशिक नाम को पहचान दिलाना

कालेज में पढ़ाई के दौरान सतीश कौशिक इंग्लिश अखबार पढ़ते थे और उनकी सोच थी कि कौशिक नाम को अखबारों में मशहूर करना है. समय ने करवट ली और वो नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पास हुए. साल 1979 में वो मुंबई चले गए और यहां से उनकी कामयाबी का सफर शुरू होकर अखबारों की सुर्खियां बटोरने लगा था.

मनोबल साथ चला और सपने पूरे हुए

एक इंटरव्यू में सतीश कौशिक ने कहा था कि हौसलों में उड़ान हो तो किसी भी सफलता को आसानी से हासिल किया जा सकता है. वो 14 सुपरहिट फिल्में बना चुके हैं और 150 फिल्मों में अपनी अदाकारी की अमिट छाप छोड़ चुके हैं. उन्होंने कहा था कि हरियाणा में हिंदी फिल्मों का ऐसा क्रेज भी नहीं था तो ऐसे में बॉलीवुड में करियर बनाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था.

सतीश कौशिक ने कहा था कि मनोबल साथ चला और सपने पूरे होते गए. पिछले दिनों उन्होंने म्हारी छोरियां छोरों से कम नहीं हैं, हरियाणवी फिल्म बनाकर अपनी मातृभूमि से जुड़ाव बनाए रखा. वो हरियाणा के लिए बहुत कुछ करने का सपना संजोए बैठे थे लेकिन उनकी मौत ने सारी हसरतें खत्म कर दी है और हरियाणा ने अपने अदाकार बेटे को हमेशा- हमेशा के लिए गंवा दिया.

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