दुष्यंत चौटाला न घर के रहें न घाट के, BJP के साथ रहकर क्या पाया- क्या खोया

चंडीगढ़ | साल 2019 के विधानसभा चुनावों में जननायक जनता पार्टी ने 10 सीटों पर जीत हासिल की थी और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन की सरकार बनाकर दुष्यंत चौटाला ने किंगमेकर की भूमिका अदा की थी, लेकिन अब लोकसभा चुनावों में शीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बनने पर BJP- JJP गठबंधन टूट गया है. सीएम मनोहर लाल सहित सभी कैबिनेट मंत्रियों ने सामूहिक इस्तीफा राज्यपाल को सौंपा और फिर हरियाणा में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में नई सरकार का शपथग्रहण समारोह आयोजित हुआ.

dushant chautala

बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला की जजपा से अलग होकर हरियाणा में अकेले सरकार बनाने का ही नहीं बल्कि लोकसभा चुनाव भी अपने बलबूते लड़ने का फैसला कर लिया है. ऐसे में दुष्यंत चौटाला अब न घर के बचे है और न ही घाट के. हरियाणा के सियासी चक्रव्यूह में JJP घिर गई है. अब लोकसभा चुनाव की राजनीतिक सरगर्मी के साथ ही हरियाणा की सियासत नई करवट लेती दिख रही है.

एक- दूसरे के खिलाफ रही सियासत

बीजेपी के पास जजपा से गठबंधन तोड़ने की राजनीतिक वजह भी है. बीजेपी नेतृत्व का कहना है कि साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने में पार्टी को नुकसान हो सकता था क्योंकि दोनों ही पार्टियों की सियासत एक दूसरे के खिलाफ रही है. बीजेपी ने हरियाणा में गैर- जाट की राजनीति करके अपनी सियासी जमीन तैयार की है तो JJP की राजनीति पूरी तरह से जाट समुदाय के इर्द-गिर्द सिमटी है.

दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार बनाकर साढ़े 4 साल भले ही सत्ता का सुख भोगा हो लेकिन गठबंधन ऐसे समय टूटा है कि उनके पास कोई सियासी विकल्प नहीं बचा है. इतना ही नहीं, जेजेपी के विधायकों के टूटने का खतरा भी दिख रहा है. दुष्यंत चौटाला कहीं के नहीं बचे हैं. बीजेपी के साथ मिलकर दुष्यंत चौटाला ने क्या पाया और क्या खोया.

हरियाणा में पहचान बनाई

BJP को समर्थन देकर दुष्यंत चौटाला मनोहर लाल सरकार में डिप्टी सीएम बने और उनकी पार्टी से दो विधायक अनूप धानक और देवेन्द्र बबली ने मंत्री पद हासिल किया. सीएम मनोहर लाल के संग डिप्टी सीएम होने के चलते दुष्यंत चौटाला हर जगह साथ नजर आते थे. ऐसे में न सिर्फ जाट बाहुल्य क्षेत्र बल्कि पूरे हरियाणा में उन्होंने अपनी सियासी पहचान बनाई. गठबंधन की सरकार में शामिल थे तो कार्यकर्ताओं के हौसले भी बुलंद रहें. जेजेपी विधायक भी सरकार में होने के चलते मजबूती से जुड़े रहे. दुष्यंत चौटाला ने अपने करीबी नेताओं और समर्थकों को सरकार में भी एडजस्ट करने का काम किया, जिसमें उन्होंने कई लोगों को आयोग का चेयरमैन बनवाया.

अजय चौटाला ने उठाया सत्ता सुख

अजय चौटाला के पास JJP की कमान थी और सरकार में हिस्सेदारी होने के चलते उनकी सियासी तूती बोलती थी. सरकार में बराबर के हिस्सेदार थे, क्योंकि उनके बैसाखी के सहारे बीजेपी सरकार चल रही थी. इस बात को जेजेपी ने बखूबी समझा और अपनी सियासत को मजबूत करने का काम किया.

साढ़े 4 साल में क्या खोया

दुष्यंत चौटाला की JJP को साल 2019 के चुनावों में जनाधार बीजेपी और खट्टर सरकार के खिलाफ मिला था, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद उन्होंने बीजेपी से हाथ मिलाकर गठबंधन की सरकार बनाई. इससे उनके समर्थकों में खासी नाराजगी देखी गई. कांग्रेस और INLD ने उसी समय कहना शुरू कर दिया था कि जजपा को जो वोटबैंक मिला था वो बीजेपी के खिलाफ मिला, लेकिन उन्होंने बीजेपी के हाथों में ही गिरवी रख दिया.

जाट वोट बैंक खिसका

किसानों और पहलवानों के आंदोलन में भी सबसे ज्यादा खिलाफत दुष्यंत चौटाला के खिलाफ देखने को मिली क्योंकि दोनों आंदोलनों में बड़ी संख्या में जाट समुदाय के लोग थे. बीजेपी के साथ सत्ता में होने के चलते जाट समुदाय की नाराजगी दुष्यंत चौटाला के खिलाफ भी उपजी है. जाट समाज में जेजेपी का सियासी आधार खिसका है, जिसके चलते पंचायत चुनाव में उनकी पार्टी को हार का मूंह देखना पड़ा. बीजेपी के साथ होने के चलते मुस्लिम वोटबैंक में भी नाराजगी है. जेजेपी जिस सियासी समीकरण के सहारे किंगमेकर बनी थी, उसे सत्ता सुख उठाने के चक्कर में बिगाड़ दिया है.

विधायक टूटने का खतरा

बीजेपी से गठबंधन टूटने पर दुष्यंत चौटाला ने अपनी पार्टी के सभी विधायकों की मीटिंग बुलाई थी, लेकिन उसमें सिर्फ 5 विधायक ही दिल्ली पहुंचे थे जबकि 5 विधायक बीजेपी के सम्पर्क में बताए जा रहे हैं. जेजेपी के विधायक अगर टूटते हैं तो दुष्यंत चौटाला के लिए आगे की सियासी राह काफी मुश्किलों भरी हो जाएगी.

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