बारिश के बाद गुलाबी सुंडी के प्रकोप से चौपट हुई कॉटन बेल्ट, किसान खड़ी फसलों पर ट्रैक्टर चलाने को मजबूर

हिसार । प्रदेश में सितंबर माह में अनुमान से अधिक हुई बारिश ने किसानों को बर्बाद कर दिया है. बारिश के चलते हुए जलभराव से अधिकतर जिलों में फसलें खराब हो चुकी है. ज्यादा बारिश का सबसे ज्यादा नुकसान कपास की फसल को झेलना पड़ा है. बारिश के बाद जो थोड़ी बहुत फसल बची थी उसे अब गुलाबी सुंडी ने खत्म कर दिया है.

DADRI NEWS

जिन क्षेत्रों में प्रति एकड़ 15 क्विंटल कपास की पैदावार नजर आ रही थी वहां अब मुश्किल से 4-5 क्विंटल रह गई है. गुलाबी सुंडी से हालात इतने खराब हो रहें कि किसान अपनी खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चलाने पर मजबूर हो गए हैं. बता दें कि यह सुंडी बंद टिंडे के अंदर हैं जिसके चलते इस पर किसी भी कीटनाशक दवाई का असर नहीं हो रहा है. भिवानी, जींद, हिसार, फतेहाबाद और सिरसा में गुलाबी सुंडी के प्रकोप ने वैज्ञानिकों की भी चिंता बढ़ा दी है. हिसार जिले में कुल 1 लाख 50 हजार हेक्टेयर में से लगभग 30 हजार हेक्टेयर कपास की फसल को गुलाबी सुंडी ने बिल्कुल खात्मे की कगार पर पहुंचा दिया है. किसानों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें खराब हुई फसल का मुआवजा दिया जाए.

हिसार जिले के नारनौंद, बरवाला और उकलाना के कुछ इलाकों में गुलाबी सुंडी का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिल रहा है. एचएयू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस पर चिंता जाहिर करते हुए किसानों को सावधान रहने की सलाह दी है. आंशका है कि रुई की पिराई करने वाले कारखानों से गुलाबी सुंडी का प्रकोप बढ़ा था. टैक्सटाइल उधोगों में दक्षिण भारत से सस्ती रुई आती है और इन्हीं के जरिए गुलाबी सुंडी प्रदेश में पनपी है.

अगली बार यें प्रयोग करें किसान

एक बार किसी इलाके में सुंडी की दस्तक के बाद बनछटी में सुंडी का प्यूपा पनपता है. 3-4 माह तक यह सुप्त अवस्था में होती है. फ़रवरी- मार्च में पतंगें बनकर उड़ती है और अंडे देती है. इन अंडों से सुंडी बनती है जो अगली बार कपास के पौधे लगने के बाद फूल के अंदर चली जाती है. इसके बाद फूल से टिंडा तैयार होता है तो यह अंदर घुस जाती है और टिंडा बंद हो जाता है. कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी है कि खेतों में बनछटी इक्कठा न करें. यदि खेत में ही इक्कठी करनी है तो फरवरी मार्च में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें ताकि प्यूपा से पतंगें उड़कर अंडे न दें सकें.

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