हरियाणा के इस ऐतिहासिक मंदिर को अपने अधीन लेगी हरियाणा सरकार, आज कैबिनेट मीटिंग में लग सकती है मुहर

झज्जर | हरियाणा की मनोहर सरकार महाभारतकालीन माता भीमेश्वरी देवी के बेरी (झज्जर) स्थित मंदिर का संचालन अपने अधीन लेने का बड़ा फैसला ले सकती है. हरियाणा कैबिनेट की सोमवार को होने वाली बैठक में इस मंदिर को सरकार के अधीन लिए जाने के फैसले पर मुहर लग सकती है. बता दें कि झज्जर जिले के बेरी में स्थित इस ऐतिहासिक मंदिर में साल में दो बार लगने वाले मेले में प्रदेश से ही नहीं बल्कि दूरदराज क्षेत्रों से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं.

Haryana CM Manohar Lal

इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि मां भीमेश्वरी देवी की अनुकंपा का ऐसा असर है कि सच्चे मन से मंगल कामना करने पर हर इच्छा पूरी होती है. बता दें कि बेरी कस्बे की पहचान महाभारत काल से ही है. कौरवों व पांडवों की कुलदेवी हिंगलाज पर्वत, जो अब पाकिस्तान में है, उस पर निवास करती थीं. महाभारत युद्ध के दौरान मां के आदेश पर भीम कुलदेवी का आशीर्वाद लेने हिंगलाज पर्वत पहुंचे और मां की अराधना आरंभ की. माता ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए व अराधना का कारण पूछा तो भीम ने महाभारत के युद्ध के बारे में बताते हुए साथ चलने की प्रार्थना की.

बताते हैं कि मां इस शर्त पर चलने को तैयार हुई कि रास्ते में कंधे से नीचे नहीं उतारेंगे. शर्त मानकर भीम मां को कंधे पर विराजमान कर चल पड़े. बेरी पहुंचने पर जंगल में एक तालाब के पास भीम ने लघुशंका की इच्छा होने पर शर्त को भूलकर मां को कंधे से नीचे उतार दिया. लघुशंका से निवृत होकर तालाब में स्नान कर जब भीम ने मां को अपने कंधे पर विराजमान करना चाहा तो प्रतिमा टस से मस न हुई. इसके बाद भीम मां का आशीर्वाद लेकर युद्ध के लिए चले गए और यहीं बना मंदिर भीमेश्वरी देवी मंदिर के नाम से जाना जाने लगा.

बेरी स्थित मां भीमेश्वरी के मंदिर में मां की मूर्ति एक और मंदिर दो हैं. यहां दिन के समय में बाहर वाले मंदिर में पूजा होती है और रात में भीतर वाले मंदिर में. जब मां ने भीम का अनुरोध ठुकरा दिया, उस दौरान यहां दुर्वासा ऋषि ठहरे हुए थे. उन्हें जब इस घटनाक्रम के बारे मे पता लगा तो उन्होंने मां के पास पहुंच कर अनुरोध किया कि संतों के बनाए आश्रम में आकर सेवा स्वीकार करें. मां ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया. उसके बाद दिन में वहां पर दुर्वासा ऋषि मां की पूजा अर्चना करने लगे. ऋषि दुर्वासा दोनों समय बेरी में आरती के लिए आते थे. उसी परम्परा को आज भी कायम रखते हुए दिन में बाहर वाले मंदिर में और रात के समय में भीतर वाले मंदिर में मां की पूजा अर्चना की जाती है.

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