सरकारी या प्राइवेट नौकरी करने वालों के लिए पिछले दो दिन में आए सुप्रीम कोर्ट के ये दो बड़े फैसले, आपको जरूर जानने चाहिए

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा पिछले दो दिनों में दो बड़े फैसले सुनाए गए है जो कर्मचारियों के हक से जुड़े हुए है. ऐसे कई कर्मचारी हैं जो ऐसे मामलों में कोर्ट कचहरी की दौड़ धूप करते रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट की ओर से बुधवार को कहा गया कि किसी मामले में कोई सूचना छिपाना, झूठी जानकारी और FIR की जानकारी नहीं देने का मतलब यह नहीं है कि नौकरी देने वाला मनमाने ढंग से कर्मचारी को बर्खास्त कर सकता है.

Supreme Court

जब ट्रेनिंग के दौरान पता चली FIR की बात

सुप्रीम कोर्ट में पवन कुमार की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई हुई. पवन की रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) में बतौर कांस्टेबल नौकरी लगी थी. जब पवन की ट्रेनिंग शुरू थी तो उसे इस आधार पर एक आदेश से हटा दिया गया कि कैंडिडेट ने यह खुलासा नहीं किया कि उसके खिलाफ FIR दर्ज की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति ने जानकारी को छिपाया है या गलत घोषणा की है, उसे सेवा में बनाये रखने की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है लेकिन कम से कम उसके साथ मनमाने ढंग से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की ओर से भरे गए सत्यापन फॉर्म के समय, उसके खिलाफ पहले से ही आपराधिक मामला दर्ज किया गया था. शिकायतकर्ता ने अपना हलफनामा दायर किया था कि जिस शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी, वह गलतफहमी के कारण थी. पीठ ने कहा सेवा से हटाने का आदेश उपयुक्त नहीं है और इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा पारित निर्णय सही नहीं है और यह रद्द करने योग्य है.

24 साल बाद कर्मचारी को नोटिस का क्या मतलब

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल के एक टीचर के मामले में फैसला सुनाया. मामला यह था कि टीचर ने साल 1973 में स्टडी लीव ली लेकिन उन्हें इंक्रीमेंट देते समय उस अवकाश की अवधि पर विचार नहीं किया गया था. 24 साल बाद 1997 में उन्हें नोटिस जारी किया गया और 1999 में उनके रिटायर होने के बाद उनके खिलाफ वसूली की कार्यवाही शुरू की गई. टीचर ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन राहत नहीं मिली. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. अपने पहले के फैसलों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई सरकारी कर्मचारी, विशेष रूप से जो सेवा के निचले पायदान पर है, जो भी राशि प्राप्त करता है, उसे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए खर्च करेगा.

पीठ ने कहा कि जहां कर्मचारी को पता है कि प्राप्त भुगतान देय राशि से ज्यादा है या ग़लत भुगतान का पता जल्दी ही चल गया है तो अदालत वसूली के खिलाफ राहत नहीं देगी. जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने केरल के एक सरकारी टीचर के पक्ष में फैसला सुनाया जिसके खिलाफ राज्य की ओर से गलत तरीके से वेतन वृद्धि देने के लिए वसूली की कार्यवाही शुरू की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी 20 साल की कानूनी लड़ाई को समाप्त कर दिया.

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