हरियाणा के पलवल में 1200 साल पुराना खेड़ा देवी का मंदिर, गांव में था दूधिया तालाब; पढ़े इतिहास

पलवल | हरियाणा के पलवल के दूधौला गांव में 601 ई. पूर्व बना मंदिर आज भी मौजूद है. दरअसल, वनवास के दौरान पांडव इस गांव में रुके थे. वहीं पर उन्होंने खुटेला गोत्र की स्थापना की थी. माता कुंती ने भी “खेड़ा देवता माता” की पूजा कर वहीं पर मूर्ति की स्थापना की थी. पांडवों की ओर से यहां एक गौशाला भी बनवाई गई थी जिसमें हजारों गायों के रहने की व्यवस्था की हुई थी. गायों के दूध की प्रचुरता के कारण एक तालाब बनाया गया था जिसमें दूध को एकत्रित किया जाता था. इसे “दूधिया तालाब” कहा जाता है. मान्यताओं के अनुसार, इसी कारण से इस गांव का नाम दूधौला पड़ा.

Palwal Kheda Devi Mandir

करीब 1200 साल पुराना मंदिर

इस दूधौला गांव में जहा विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय स्थित है, वहां कभी खेड़ा देवी का मंदिर हुआ करता था. यह मंदिर करीब 1200 साल पुराना बताया जाता है. विश्वविद्यालय की परियोजना के चलते मंदिर को विश्वविद्यालय के मध्य से हटाकर विश्वविद्यालय के एकांत में बनाया गया. कहा जाता है कि खेड़ा देवता का मंदिर हर गांव में मौजूद होता है लेकिन, खेड़ा देवी का प्राचीन मंदिर दूधौला गांव में ही है. जिसकी पूजा करने के लिए आज भी दूर- दूर के गांवो से लोग आते हैं. इस मंदिर की कई मान्यताएं हैं जिन्हें लोग मानते हैं.

पांडवों से जुड़ा हुआ है गांव का इतिहास

इस मंदिर के महंत दामोदर दास वैष्णव ने बताया कि मंदिर पौराणिक काल के इतिहास से जुड़ा हुआ है. जब पांडवों को वनवास के लिए देश से बाहर ले जाया गया था. तब कुंती, द्रौपदी और पांचों पांडवों ने यहां लगभग 6 महीने बिताए थे. माता कुंती ने नया खेड़ा की पूजा की थी. ग्रामीणों ने कहा कि यह माता कुंती और माता मनसा देवी का एक रूप है जिसकी पूजा करने से लोगों की मनोकामनाएं लगभग पूरी हो जाती हैं.

धूमधाम से मनाए जाते हैं पवित्र त्यौहार

उसी दौरान देवर्षि नारद मुनि भी उनसे मिलने यहां आये थे. उन्होंने पूजा- अर्चना भी की थी और एक पुस्तक भी लिखी थी जिसे “नारद पंचरात्रि ग्रंथ” कहा गया है. कहा जाता है कि ये खेड़ा आसपास के करीब 50 गांवों के देवता हैं. यहां साल के दो पवित्र त्योहार होली और दीपावली बड़े धूमधाम के साथ मनाए जाते हैं. इस अवसर पर खेड़ा देवता माता मंदिर का जलाभिषेक धूमधाम से किया जाता है.

मेहमानों को पानी की जगह दिया जाता था दूध

ग्रामीण शास्त्री गंगाराम ने बताया कि यहां पांडवों की ओर से बनवाई गई गौशाला हुआ करती थी जिसमें हजारों गायें निवास करती थी. लेकिन, अब विश्वविद्यालय प्रोजेक्ट के चलते उन्हें हटा दिया गया है. उन गायों का दूध इतना एकत्र हो जाता था कि वह एक तालाब में एकत्रित करना पड़ता था. जब भी गांव के किसी घर में कोई मेहमान आता था तो मेहमान को स्वागत में पानी की जगह दूध दिया जाता था.

आज भी मेहमानों का दूध से किया जाता है स्वागत

उन्होंने बताया कि जैसे- जैसे समय बितता गया, उस कुंड की मान्यता भी खत्म होती चली गई. विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद वह तालाब तो नहीं रहा लेकिन, गांव के लोग आज भी मवेशी पालते हैं और मेहमानों का स्वागत दूध से करते हैं. आज भी बुजुर्ग लोग गांव को दूधवाला ही कहते हैं. पंचायत के मुताबिक, बाद में गांव का नाम बदलकर दूधौला कर दिया गया.

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