सरसों के बाद गेहूं की सरकारी खरीद में भी सरकार के हाथ रह सकते हैं खाली, ये हैं बड़ी वजह

सिरसा । हरियाणा की मंडियों में गेहूं की सरकारी खरीद 1 अप्रैल से शुरू होने जा रही है. केन्द्र सरकार द्वारा गेहूं (Wheat) का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2015 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है लेकिन गेहूं खरीद सीजन शुरू होने से पहले ही व्यापारियों ने एमएसपी से अधिक भाव पर गेहूं की खरीद के लिए मंडियों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं. प्रदेश की विभिन्न मंडियों में कुछ जगहों पर गेहूं की खरीद को लेकर आढ़तियों से सीधी बातचीत की जा रही है.

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बता दें कि रूस और यूक्रेन (Russia- Ukraine War) के बीच छिड़ी जंग का असर हरियाणा फसल खरीद सीजन 2022-23 पर भी देखने को मिल रहा है क्योंकि सरसों (Mustard) के बाद गेहूं की सरकारी खरीद को लेकर हरियाणा सरकार के हाथ खाली रह सकते हैं. रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग की वजह से इस सीजन मंडियों से बाहर गेहूं की खरीद सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 500 से 700 रुपए प्रति क्विंटल तक ज्यादा रहने का अनुमान है.

हरियाणा सरकार ने इस सीजन 85 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया है. सिरसा मंडी के एक व्यापारी ने बताया कि आने वाले दिनों में गेहूं के भाव में तेजी दर्ज होती है तो किसान मंडियों में फसल लाने की बजाय सीधे व्यापारियों को ही बेचेगा. फिलहाल सिरसा मंडी में गेहूं 2200 रुपए प्रति क्विंटल तक बिक रही हैं जबकि राजस्थान में नई गेहूं 2400 रुपए प्रति क्विंटल व्यापारी खरीद रहे हैं.

गेहूं खरीद के लिए बढ़ाए 15 अतिरिक्त खरीद केंद्र

गेहूं की सरकारी खरीद के लिए किसानों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए इस बार सरकारी खरीद केंद्रों की संख्या बढ़ाई गई है. पिछले सीजन जहां गेहूं खरीद के लिए 396 मंडियों की व्यवस्था की गई थी तो वही इस बार इस संख्या में 15 अतिरिक्त खरीद केंद्र और जोड़ दिए गए हैं. इस बार 410 खरीद केंद्रों पर गेहूं की सरकारी खरीद सुनिश्चित की जाएगी.

सरसों का एक दाना भी नहीं पहुंचा

हरियाणा में सरसों की सरकारी खरीद 21 मार्च से शुरू हो चुकी है लेकिन आज 10 दिन बीत जाने के बावजूद भी विभिन्न मंडियों में सरसों बिकने के लिए नहीं पहुंची है. सरकार द्वारा सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है लेकिन किसानों को मंडी से बाहर 6500 रुपए प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है. इसलिए किसान सीधे व्यापारियों को ही अपनी सरसों की फसल बेच रहे हैं.

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