आरक्षण की समीक्षा पर हरियाणा सरकार ने जवाब के लिए फिर से मांगा समय, हाईकोर्ट ने दिया आखिरी मौका

चंडीगढ़ | हाई कोर्ट ने कई बार हरियाणा सरकार को आरक्षण की समीक्षा के लिए आदेश जारी किए हैं, मगर इतनी बार जारी आदेश के बाद भी हरियाणा सरकार ने आरक्षण की समीक्षा पर जवाब दायर नहीं किया. इस पर अब हाईकोर्ट ने सख्ती अपनाई है. अदालत ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार को जवाब देने का आखरी मौका दिया है. जब सुनवाई शुरू हुई तो सरकार ने फिर से जवाब के लिए समय की मांग की है.

HIGH COURT

18 जुलाई तक सुनवाई स्थगित

चंडीगढ़ आधारित स्नेहांचल चैरिटेबल ट्रस्ट ने याचिका दाखिल करते हुए हाईकोर्ट को कहा था कि नेशनल कमीशन फार बैकवर्ड क्लास (NCBC) की गाइडलाइन के मुताबिक तथा इंदिरा साहनी और राम सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की समीक्षा के बारे में कहा है कि आरक्षण की समीक्षा प्रत्येक 10 साल में होनी चाहिए. इसके बावजूद आज तक समीक्षा नहीं हुई है.

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उच्च न्यायालय की जस्टिस रितु बाहरी व जस्टिस निधि गुप्ता की खंडपीठ के सामने जैसे ही मामले की सुनवाई शुरू हुई सरकार ने फिर से जवाब दायर करने के लिए समय की मांग की. इसपर बेंच द्वारा मामले की सुनवाई 18 जुलाई तक स्थगित की गई और साफ तौर पर कहा गया है कि सरकार को जवाब देने के लिए यह केवल आखिरी अवसर मिल रहा है.

साल 2000 में होनी थी समीक्षा

याची ने बताया कि हरियाणा में आरक्षण के लिए मंडल कमीशन की रिपोर्ट को 1995 में अपनाया गया और इस रिपोर्ट के आधार पर शेड्यूल ए और बी तैयार किया गया था. इस रिपोर्ट में भी यह बताया गया था कि 20 सालों में पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण की समीक्षा की जाए. याची ने कहा कि इस आयोग की रिपोर्ट को 15 साल बाद 1995 में अपनाया गया था और ऐसे में 2000 में इसकी समीक्षा होनी चाहिए थी, पर 2017 तक 37 साल निकल गए हैं मगर किसी भी स्तर पर समीक्षा के लिए कोई भी कोशिश नहीं की गई है.

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अपना हित साधने के लिए राजनीतिक दलों ने नहीं अपनाई प्रक्रिया

याची ने कहा कि एनसीबीसी और सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण व्यवस्था के लिए आंकड़े इकट्ठा करने और समीक्षा करने के लिए पूरी प्रक्रिया को क्लियर किया था लेकिन राजनीतिक दलों ने अपनी भलाई के लिए इसे अपनाया ही नहीं. याची ने कहा कि 1951 से लेकर अभी तक केवल जातियों को जोड़ा गया है.

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हाईकोर्ट ने इसपर याची से पूछा था कि इस बारे में क्या किया जा सकता है. इसपर याची ने कहा कि नए सिरे से आंकड़े एकत्रित किए जाए और यह देखा जाए कि किस जाति को आरक्षण की आवश्यकता है और किसे नहीं है. यह प्रक्रिया हर 10 साल में दोहराई जानी चाहिए.

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