पशुओं में मक्खियों से फैलती है यह घातक बीमारी,इन घरेलू विधियों से करें घर पर उपचार

हिसार । बरसात के मौसम के बीच पशुपालकों को अपने पशुओं का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. पशुओं में अब एक और खतरनाक बीमारी दस्तक दे रही है. यह एक संक्रामक बीमारी है जो एक पशु से दुसरे पशुओं में फैल रही है. इस बीमारी की चपेट में आने पर दुध उत्पादन में भी कमी आ रही है और कई मामलों में पशुओं की मौत तक हो रही है.

Cow and Buffalo
कमजोरी की वजह से इस रोग से पीड़ित पशु को अन्य बीमारियां भी चपेट में लें रही है जैसे मुंह खुर, गलघोंटू इत्यादि. इसलिए इस बीमारी को इतना खतरनाक माना जा रहा है. इस बीमारी को सर्रा नाम दिया गया है. सर्रा का संक्रमण मुख्यत टैबेनस (डांस) वंश की मक्खियों के काटने से होता है. इस बीमारी के लिए उतरदायी परजीवी( ट्रिपैनोसोमा) खून चूसने के समय संक्रमित पशु से स्वस्थ पशु को अपना शिकार बना रहे हैं. ये मक्खियां बरसाती सीजन में अधिक सक्रिय हो जाती है.

इन पशुओं में पाया जाता है सर्रा रोग

जब पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है,तब संक्रमित पशु में इस बीमारी के लक्षण नजर आने लगते हैं. यह बीमारी भैंस,गाय, घोड़ा, ऊंट के साथ-2 जंगली जानवरों में भी पाई जाती है. यह बीमारी उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले प्रदेशों में अधिक पाई जाती है क्योंकि यह जलवायु टैबेनस( डांस) वंश की मक्खियों के पनपने के लिए अनुकूल होती है.

रोग के लक्षण

  • इस बीमारी से ग्रस्त सभी पशु रक्ताल्पता के शिकार होते हैं और उनमें मांसपेशियों की दुर्बलता साफ तौर पर देखने को मिलती हैं.
  • रोगी पशुओं को रुक-रुककर बुखार आता है.
  • ज्यादा संक्रमित पशु अपने बंधे हुए स्थान पर चक्कर काटने लगता है और दीवार व खूंटे पर सिर मारने लगता है.
  • परजीवी गर्भवती मादा पशुओं में नाल के माध्यम से भ्रुण को संक्रमित कर सकता है. जिसके चलते समय से पहले भी गर्भपात हो सकता है.
  • ग्रसित पशु में दुर्बलता के साथ-साथ गर्दन व बगलो में खाल पर पित निकल आते हैं.

इलाज के उपाय

  • सर्रा रोग के लक्षण नजर आने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें.
  • पशु को तुरंत स्वास्थ्य लाभ देने के लिए रक्तवर्द्धक एवं लिवर टॉनिक दें.
  • पुनर्नवा या गंधपरणा की पौध एवं जड़ें, गिलोय व आंवला भी इस रोग में आराम पहुंचाते हैं.
  • पशु में रक्ताल्पता को दूर करने के लिए फेरस सल्फेट (10 ग्राम) व कॉपर सल्फेट (5 ग्राम) को 500 ग्राम गुड़ में मिलाकर हर रोज खिलाएं.
  • अश्वगंधा चूर्ण (20 ग्राम) को 250 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर दिन में एक बार एक सप्ताह तक खिलाएं.

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