सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू करने को लेकर हरियाणा सरकार ने किएं हाथ खड़े, जानें क्या है पूरा मामला

नई दिल्ली । अरावली वन भूमि पर अवैध निर्माण ढहाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को पूरा करने पर हरियाणा सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं. हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया कि आदेश का पालन किया गया तो अंबाला, गुरुग्राम व फरीदाबाद सहित 11 जिलों में सरकारी कार्यालयों, आवासीय भवनों, स्कूल- कॉलेज सहित अन्य ढांचों को ध्वस्त करने की नौबत आ जाएंगी. इससे प्रदेश में कानून-व्यवस्था बिगड़ने की संभावना बढ़ सकती हैं. यह हमारी क्षमता से बाहर है.

aravali ki pahadi

बता दें कि इसी साल 23 जुलाई को खोरी गांव में अवैध निर्माण मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वन भूमि पर स्थित सभी ढांचों को हटाने का हमारा निर्देश बिना किसी अपवाद के सभी पर लागू होगा. इस पर हरियाणा सरकार का तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के हिसाब से प्रदेश की करीब 40% भूमि वन भूमि के अन्तर्गत आती है. इस फैसले का जिक्र करते हुए हरियाणा सरकार ने आदेश को लागू करने में असमर्थता जताई है.

बड़े निर्माणों पर असमंजस की स्थिति

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खोरी गांव में 129 फॉर्म हाउस, स्कूलों व धार्मिक स्थलों को ध्वस्त करने का मामला अभी बाकी है. इन्हीं को लेकर हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा था. प्रशासन द्वारा खोरी गांव में एक बस्ती को ढहा दिया गया था और साथ ही बाकी के मालिकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था लेकिन कई लोगों ने दावा किया कि उनकी संपत्ति वन क्षेत्र के दायरे से बाहर है.

भूमि संरक्षण अधिनियम के तहत वन भूमि

सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के एक फैसले में कहा था कि पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (पीएलपीए) 1990 के तहत आने वाली भूमि को ही वन भूमि माना जाएगा. इसी तर्क के आधार पर 2018 में कोर्ट ने फरीदाबाद में आवासीय कॉलोनी कांत एन्क्लेव में सभी इमारतों को ढहाने के निर्देश दिए थे.

बता दें कि पीएलपीए के तहत 17,39,907 हेक्टेयर भूमि अधिसूचित है. इस अधिसूचित भूमि में मेवात, पलवल, फरीदाबाद, गुरुग्राम, रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, भिवानी, चरखी दादरी, अंबाला, पंचकूला और यमुनानगर शामिल हैं.

यें लोगों के संवैधानिक अधिकार का भी मुद्दा

अरावली वन भूमि पर स्थित सभी अनधिकृत संरचनाओं को ढहाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हरियाणा ने कहा है कि सितंबर 2018 के फैसले और 23 जुलाई के आदेश के अनुसार, पीएलपीए की विभिन्न धाराओं के तहत अधिसूचित सभी क्षेत्र वन भूमि हैं.राज्य सरकार ने कहा कि यह भूमि पर लोगों के संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा प्रासंगिक मुद्दा भी है क्योंकि ये निर्माण कानून के अनुसार अपेक्षित अनुमति मिलने के बाद किए गए हैं.

हलफनामे के लिए मांगा जवाब

खोरी गांव के लोगों और संपतियों के मालिकों की ओर से पेश वकीलों ने हरियाणा सरकार के हलफनामे पर जवाब दाखिल करने के लिए पीठ से समय मांगा. इस पर पीठ ने उन्हें समय देते हुए सुनवाई के लिए अगली तारीख 15 नवम्बर रखी है.

क्या आपके पास अब यही तर्क है

शुक्रवार को सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि कोर्ट का 2018 का निर्णय थोड़ा गलत हो गया है. इस पर जस्टिस एएम खानविलकर की पीठ ने मेहता से कहा कि साल 2018 के निर्णय के बाद क्या अब आपके पास यह तर्क उपलब्ध है.

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