पानीपत की ये दरगाह महज ढाई घंटे में बनकर हुई थी तैयार, 700 साल पुराना है इतिहास

पानीपत | ऐतिहासिक शहर पानीपत में सिर्फ तीन युद्धों का ही इतिहास नहीं है बल्कि इसमें कई ऐसे किस्से शामिल हैं, जिनसे शायद लोग अब भी अनजान हैं. ऐसी ही एक कहानी पानीपत के कलंदर बाजार के बीच में बनी बू अली शाह कलंदर दरगाह की है. महज ढाई घंटे में बनी पानीपत की बू अली शाह कलंदर दरगाह का 700 साल से ज्यादा का इतिहास काफी दिलचस्प है.

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विदेशों से भी लोग आते हैं मन्नत मांगने

यहां विदेशों से भी लोग मन्नत मांगने आते हैं. करीब 700 साल पुरानी दरगाह की खास मान्यता है. इसे अजमेर शरीफ और हजरत निजामुद्दीन की तरह सम्मान दिया जाता है. यहां बड़ी संख्या में लोग नमाज अदा करने आते हैं और दरगाह के बगल में ताला लगा हुआ है. गुरुवार के दिन यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. ताला लगाने की जगह पर लोग कागज पर संदेश लिखकर अपनी मन्नतें मांगते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने के बाद भी यहां आते हैं.

मन्नत पूरी होने पर लोग गरीबों को खाना खिलाते हैं और दान-पुण्य करते हैं. हर साल उर्स मुबारक के मौके पर यहां विशेष जलसा आयोजित किया जाता है. इस मौके पर दुनिया भर से बू अली शाह कलंदर के अनुयायी आते हैं. इस मकबरे के मुख्य द्वार के दाहिनी ओर प्रसिद्ध उर्दू शायर ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली पानीपति की कब्र भी है. मान्यता है कि मन्नत पूरी होने के बाद यहां लगा ताला अपने आप नीचे गिर जाता है.

जन्म स्थान को लेकर अलग-अलग मान्यताएं

कलंदर शाह के जन्म स्थान के बारे में अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ लोगों का मानना ​​है कि उनका जन्म तुर्की में हुआ था तो कई लोग अजरबैजान को बताते हैं. अधिकांश लोगों के अनुसार, पानीपत उनका जन्म स्थान है. कलंदर शाह की प्रारंभिक शिक्षा पानीपत में हुई. कुछ दिनों के बाद वह दिल्ली चले गए और कुतुब मीनार के पास रहने लगे. अपने ज्ञान को देखकर साधु के कहने पर वह खुदा की इबाबत करने लगे. 36 साल की लगातार तपस्या के बाद उन्हें अली की बू प्राप्त हुई. तभी से उनका नाम शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर हो गया.

पानीपत में हुई प्रारंभिक शिक्षा

पहले बू अली शाह कलंदर का नाम शरफुद्दीन था. कलंदर शाह का जन्म 1190 ई. में हुआ था. 122 वर्ष की आयु में अर्थात 1312 ई. में उनकी मृत्यु हो गई. मरने से पहले उन्होंने कहा था कि उन्हें पानीपत में ही दफनाया जाए. उनके माता-पिता इराक के रहने वाले थे लेकिन उनकी शिक्षा पानीपत से ही हुई थी. करीब 700 साल पहले उन्होंने हाई कोर्ट के जज के तौर पर भी काम किया था. कलंदर शाह के पिता शेख फखरुद्दीन अपने समय के एक महान संत और विद्वान थे. उनकी मां हाफिजा जमाल भी धार्मिक स्वभाव की थीं.

दुनिया में बुअली शाह की केवल ढ़ाई दरगाह

पानीपत की इस दरगाह पर आज भी जिन्नातों द्वारा लगाए गए अनोखे पत्थर यहां मौजूद हैं. आपको बता दें कि यहां मौसम बताने वाले पत्थर और सोने की परख करने वाले पत्थर और जहर मोहरा नाम के पत्थर हैं. अगर कोई जहरीला सांप या कोई और जहरीला जीव किसी इंसान को काट लेता है तो ये जहरीले मोहरे के पत्थर इंसान के शरीर से सारा जहर बाहर निकाल देते हैं.

दुनिया में कलंदर की सिर्फ ढाई दरगाहें है. पानीपत में बुआली शाह की पहली पाकिस्तान में दूसरी और इराक के बसरा में तीसरी है. चूंकि बसरा की दरगाह एक महिला सूफी की है इसलिए इसे आधे का दर्जा प्राप्त है.

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