पानीपत में 17वीं शताब्दी में मराठाओं ने स्थापित किया था देवी माँ का मंदिर, इतिहास जानकर जाग जाएगी श्रद्धा

पानीपत | हरियाणा में कई ऐसे मंदिर हैं जो ऐतिहासिक महत्व रखते हैं. मंदिर पुराने होने की वजह से यहां पर लोगों की आस्था भी गहरी होती है. आज हम आपको पानीपत के देवी मंदिर के बारे में बताएंगे. यह मंदिर काफी पुराना है. बता दे इस मंदिर का इतिहास भी काफी दिलचस्प है. आज यहां पर दूर- दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं.

Devi Tulja Bhawani Panipat Mandir

दुर्लभ हीरों से बनी थी मूर्ति

इस मंदिर का निर्माण मराठाओं ने पानीपत के युद्ध के दौरान करवाया था. लोगों का मानना है कि पेशवा अपने साथ देवी तुलजा भवानी की जो मूर्ति लाए थे, उस पर हीरे जड़े हुए थे लेकिन आज हीरे केवल मूर्ति की आंखों में ही मौजूद हैं जिनकी चमक में भी दिव्यता झलकती है. यहां हर साल नवरात्रि के दौरान विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. कहते है कि जो भी यहां सच्ची श्रद्धा से मनोकामना करता है वह पूरी जरुर होती है.

मंदिर का है ये इतिहास

इतिहासकार रमेश पुहाल के अनुसार, मंदिर का निर्माण पहले ही हो चुका था लेकिन यह मंदिर आज के युग जितना विशाल नहीं था. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में मराठा सरदार सदाशिव भाऊ ने करवाया था. मराठों की देवी मां के प्रति अटूट श्रद्धा थी. मराठाओं ने ही मंदिर के बाहर तालाब का निर्माण भी करवाया था.

मंदिर को लेकर ये है दिलचस्प बात

बता दें कि 1761 में मुगलों और मराठों के बीच हुए युद्ध में दिल्ली पर विजय प्राप्त करने के बाद सदाशिव भाऊ अपनी सेना के साथ कुरुक्षेत्र की ओर जा रहे थे. तभी सदाशिव भाऊ की सेना को पता चला कि अहमद शाह अब्दाली ने दोबारा हमला कर दिया है और वह सोनीपत के गन्नौर के पास पहुंच गया है, वहां से मराठा सेना वापस पानीपत लौट आई. सुरक्षित स्थान की तलाश करते हुए सेना पानीपत के उस स्थान पर पहुंची जहां आज यह देवी मंदिर स्थित है.

महिलाओं ने स्थापित की मूर्ति

यह भी कहा जाता है कि सदाशिव ने बाले राम पंडित के साथ पूरे देवी मंदिर का निरीक्षण किया और अपनी सेना को रोकने के लिए कहा. पेशवाओं की महिलाएं अपने साथ देवी तुलजा भवानी की मूर्ति लेकर आई थीं जिसकी वे सुबह और शाम को पूजा करती थीं. महिलाओं ने इस प्रतिमा को तालाब के पास स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी. फिर 1761 के युद्ध के बाद मराठा यहाँ से ग्वालियर चले गये. 1771 में मराठा फिर यहां पहुंचे और एक छोटा सा मंदिर बनवाया और वहां देवी तुलजा की मूर्ति भी स्थापित की. वैसे, इस मंदिर में पूजा अर्चना को लेकर लोगों की गहरी आस्था है.

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