हरियाणा में नए राजनीतिक दल के गठन की सुगबुगाहट, हुड्डा और शैलजा में चल रही है तनातनी

चंडीगढ़ | हरियाणा में नई सियास पार्टी के जन्म की सुगबुगाहट है. इसके काफी अरसे से संकेत मिल रहे हैं. इसकी वजह या आधार बन सकती है पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा की तनातनी. हुड्डा समर्थक विधायकों ने कुमारी सैलजा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और कांग्रेस हाईकमान तक अपनी बात पहुंचाने में जुटे हैं. पूरे मामले में हुड्डा समर्थक और कांग्रेस हाईकमान में भी तनातनी वाला माहौल बनता दिख रहा है.

bhupender singh hooda

हुड्डा समर्थक विधायकों के हाईकमान से तनातनी वाले ऐसे ही हालात 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले भी बने थे. 2024 में होने वाले चुनाव में अभी हालांकि 3 साल का समय है, लेकिन राजनीतिक दलों की बढ़ रही सरगर्मियां चुनाव की तैयारियां का एहसास करा रही है. सबसे ज्यादा सरगर्मी कांग्रेस में है. वहां पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा व मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा के बीच राजनीतिक द्वंद चल रहा है. दोनों दिग्गजों के बीच चल रही इस तनातनी से कांग्रेस हाईकमान दुविधा में है.

2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की 31 सीटें आई थी. इतनी ज्यादा सीटें आने का कांग्रेसियों को एहसास तक नहीं था. हुड्डा समर्थक विधायकों की संख्या इनमें 24 है. सैलजा के साथ तीन विधायक है. तीन विधायक किरण चौधरी, कुलदीप बिश्नोई और कैप्टन अजय यादव के बेटे राव चिरंजीव खुद का अपना राजनीतिक वजूद मानते हैं.

भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ पूर्व मंत्री किरण चौधरी

किरण चौधरी को छोड़कर हालांकि कुलदीप व चिरंजीव को हुड्डा समर्थक विधायकों की बैठक में अक्सर देखा जाता रहा है. लेकिन जब नेतृत्व की बात आती है तो उनकी राहें जुदा ही देखने को मिलती है. 2019 के चुनाव से पहले तत्कीलन प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को पद से हटवाने के लिए हुड्डा समर्थक विधायकों ने पूरा जोर लगा दिया था. इसमें वह कामयाब भी हो गए थे. तब पूर्व केंद्रीय मंत्री सैलजा को प्रदेश अध्यक्ष पद की बागडोर सौंपी गई थी.

कांग्रेस हाईकमान ने हुड्डा समर्थक विधायकों की बात नहीं मानी तो प्रदेश की राजनीति में कुछ भी संभव:
कुमारी सैलजा को अध्यक्ष बनाने पर हालांकि हुड्डा सहमत थे. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और 2024 के चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, सैलजा पर संगठन में सक्रियता न ला पाने तथा विधायकों को साथ लेकर नहीं चलने के आरोप लग रहे हैं. इसी को आधार बनाकर हुड्डा समर्थक विधायकों ने सैलजा को भी पद से हटाने के लिए मोर्चाबंदी कर दी है.

कांग्रेस हाईकमान में हुड्डा का खूंटा मजबूत माना जाता है. उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी हाईकमान में जाना पहचाना चेहरा है. इसके साथ ही सोनिया गांधी के बेहद नजदीकी होने के कारण शैलजा के राजनीतिक वजन को भी किसी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

कांग्रेस विधायक दल की नेता रह चुकी किरण चौधरी की दिल्ली दरबार में अच्छी पैठ है.पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई को राहुल की मित्र मंडली का सदस्य माना जाता है. कैप्टन अजय यादव बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव के समधि होने की वजह से सीधे सोनिया गांधी की नजरों में रहते हैं. रणदीप सिंह सुरजेवाला का बड़ा राजनीतिक कद किसी से छिपा नहीं है.

ऐसे में कांग्रेस के भीतर चल रही लड़ाई को सिर्फ संगठन की सक्रियता से जुड़ी लड़ाई न मानकर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की दौड़ में जोड़कर देखा जा रहा है. हुड्डा समर्थक विधायकों की सोच है कि उनके नेता के नेतृत्व में ही कांग्रेस हरियाणा में चुनाव जीत सकती है, जबकि ऐसा दावा दूसरे कांग्रेस दिग्गज भी अपने अपने नेतृत्व को लेकर कर रहे हैं.

उनकी सोच दीपेंद्र सिंह हुड्डा को प्रदेश में पूरी तरह प्रतिष्ठापित करने की भी है. ऐसे में यदि हुड्डा समर्थक विधायकों की अधिक संख्या के बावजूद उनकी बात को हाईकमान तरजीह नहीं देता तो उनके पास अलग पार्टी बनाने के विकल्प भी खुले हैं. यह अलग बात है कि कुछ विधायक इसे बहुत जल्दी का फैसला बताते हुए अलग पार्टी के हक में बिल्कुल भी नहीं है, जबकि कुछ विधायक इस काम में देरी न करने की सलाह दे रहे हैं. हुड्डा तेल और तेल की धार को देखकर कोई फैसला लेने का इंतजार कर रहे हैं.

धुआं वही उठता है जहां आग होती है:
2019 के चुनाव के बाद जब G-23 के प्रमुख नेता गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा से विदाई के बाद कश्मीर में एक आयोजन किया तो उसमें हुड्डा समेत अन्य कई नेताओं ने भगवा बगड़िया पहनी थी. उस समय भी हुड्डा के पार्टी बदलने या अलग पार्टी बनाने की चर्चा चली थी. अब रोहतक के सेक्टर-4 निवासी एक व्यक्ति ने हरियाणा जनहित विकास पार्टी के नाम से केंद्रीय चुनाव आयोग में एक नए दल का पंजीकरण कराया है.

इस दल के पंजीकरण को लेकर कांग्रे समेत अन्य राजनीतिक दलों में तरह-तरह की चर्चाएं हैं. हुड्डा समर्थक विधायक हालांकि फिलहाल किसी नए राजनीतिक दल के उदय से इनकार करते हैं. लेकिन बातचीत में इसकी जरूरत पर भी जोर देते हैं.

देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल ने बनाई थी अलग पार्टियां

हरियाणा की राजनीति में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों द्वारा नई पार्टी के गठन का लंबा इतिहास है. कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा की राजनीति में अब तक तीन राजनीतिक दल बनाए जा चुके हैं. चौधरी देवीलाल ने लोकदल और इनेलो, बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी और भजनलाल ने हरियाणा जनहित कांग्रेस की स्थापना की थी. चौधरी देवीलाल ने 1971 में कांग्रेस छोड़ दी थी.

हरियाणा विकास पार्टी बनाने से पहले चौधरी बंसीलाल दो बार सीएम रह चुके थे. उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के साथ बंसीलाल के अच्छे संबंध थे. पार्टी में दरकिनार होने की वजह से 1991 में बंसीलाल को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से कांग्रेसी निकाल दिया गया. 1996 में बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी की स्थापना कर दी। 8 साल के बाद 2004 में हरियाणा विकास पार्टी का विलय दोबारा कांग्रेस में हो गया.

चौधरी भजन लाल 1979, 1982, 1991 में तीन बार हरियाणा के सीएम रहे. 2005 में कांग्रेस ने हरियाणा विधानसभा का चुनाव भजनलाल के चेहरे पर लड़ा था लेकिन जब मुख्यमंत्री बनाने की बात आई तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सीएम बना दिया गया. इस बात से भजनलाल काफी नाराज हुए और उन्होंने 2007 में कांग्रेस छोड़कर हरियाणा जनहित कांग्रेस पार्टी (हजकां) बनाई. अब हजकां का कांग्रेस में विलय हो चुका है.

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