जान बचाते-2 यमुनानगर के गोताखोर ने जुटाईं ऐतिहासिक धरोहर, यमुना से निकालें दुर्लभ सिक्के

यमुनानगर । यमुना नदी में डूबने वाले लोगों की जिंदगी को संजोने वाले सुखराम ने हजारों वर्ष पूराने सिक्के भी संजोकर रखें हुए हैं. बेशकीमती धातुओं के सिक्कों में ऐसे सिक्के भी है,जो तलाशने से भी शायद ही मिल पाएं. एक सिक्के पर संस्कृत भाषा में राम लछमन जनक हनुमत…. लिखा है. एक और उस पर राम दरबार व दूसरी तरफ सीता- राम का फोटो हैं. इसको सुखराम हमेशा अपने पास रखते हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

सुखराम 35 वर्षों से यमुना में डूबने वाले लोगों की जान बचा रहे हैं. सुखराम अब तक 267 लोगों की जिंदगी बचा चुके हैं और दो हजार से अधिक शवों को यमुना में तलाश कर बाहर निकाल चुके हैं. जब भी वह किसी की जान बचाते हैं तो पहले यमुना की आराधना करते हैं. इस महान कार्य के लिए वो प्रशासन के हाथों कई बार सम्मानित हो चुके हैं लेकिन उनको कोई लाभ नहीं मिल पाया है.

सात साल की उम्र में भाई ने तैरना सिखाया

न्यू हमीदा कालोनी में रहने वाले सुखराम ने बताया कि सात साल की उम्र में उनकेे बड़े भाई तैराक दिलावर सिंह उनको यमुना पर लें गए. उन्होंने एक दिन में ही तैरना सीख लिया. उसके बाद से ही वो लगातार यमुना पर आ रहे हैं.

इस तरह बचाने लगें लोगों की जिंदगी

सुखराम ने एक पुराने वाकये का जिक्र करते हुए कहा कि उनका भाई पुराना सहारनपुर रोड़ के पुल के पास जगाधरी के एक युवक का शव निकालने गए. जनवरी माह में भाई के घर नहीं लौटने पर वह भी वहां चलें गए. सर्दी से बचाव हेतु उन्होंने शराब ज्यादा पी रखी थी. उस समय रात के दस बजे वह यमुना में कूद गए. रस्सी का फंदा शव के पैर में डालने की जगह गले में डाल दिया. इस पर परिजन उन्हें डांटने लगे. तब पुलिस ने परिजनों को संभालते हुए कहा कि 12 दिन बाद शव मिल रहा है.तभी से वह यमुना में डूबे लोगों को बचा रहे हैं और जो डूब जाते हैं उनका शव निकाल रहे हैं.

बाड़ी माजरा से दादुपुर तक बहुत सिक्के मिले

सुखराम ने बताया कि उन्हें बचपन से ही सिक्के इक्कठा करने का शौक था. यमुना से उन्होंने अब तक एक किवंटल पच्चीस किलों सिक्के इक्कठा किए हैं. उनके पास सोना, चांदी, तांबे, गिल्ट, स्टील व कांसे के सिक्के हैं. 60 किलों नए सिक्के उन्होंने बेच दिए हैं. फिलहाल 65 किलों पुराने सिक्के उनके पास है. इनमें अन्ना, दुअन्नी, क्वाटर अन्ना, तांबे का एक पैसा, चार आने सहित अन्य सिक्के हैं. मुगलकालीन 16 वीं शताब्दी के भी काफी सिक्के उनके पास है. आर्थिक स्थिति खराब होने पर उन्होंने कुछ समय पहले सोने के सिक्के बेच दिए थे.

आज तक बुखार भी नहीं हुआ

सुखराम ने कहा कि उनकी आयु 53 वर्ष हों गई है. लेकिन आज तक उन्हें बुखार भी नहीं हुआ है. उन्होंने तर्क दिया है कि उनका अधिकतर समय यमुना में ही बीतता है. इसमें जड़ी -बूटी का पानी आता है. शायद यही वजह है कि बीमारी उनसे दूर रहती है.

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