केन्द्रीय मंत्री वीके सिंह के गांव बापौड़ा में कोई हस्पताल तक नहीं, हवन के भरोसे गाम-राम की शांति

भिवानी । कोरोना महामारी के भिवानी जिले में दो अलग-अलग स्वरुप देखने को मिलें. छोटी काशी में देखें तो कोरोना महामारी न लोगों के दिलों में डर बिठाने का काम किया हुआ है जबकि यहां से जब आगे राजस्थान के टिब्बों की तरफ बढ़ते हैं तो कोरोना महामारी का नामोनिशान खत्म होता नजर आ रहा था. आइये आपको अवगत कराते हैं जिले के कुछ बड़े गांवों की दास्तां.

VK SINGH

गांव बापौडा

तोशाम हल्के का सबसे बड़ा गांव होने के साथ-साथ यह केन्द्रीय मंत्री वीके सिंह का पैतृक गांव भी है. इसके बावजूद भी गांव बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरह रहा है. गांव के बुजुर्गों ने बताया कि इस त बुरा दौर उनती अपनी जिंदगी में पहले कदे नी देखया था. गदागद लोग मरन लाग रहे हैं. गांव की डिमांड पर डीसी ने संज्ञान लेते हुए सरकारी स्कूल में आइसोलेशन वार्ड बनवा दिया लेकिन गंभीर हालत में रोहतक पीजीआई और हिसार का ही रुख करना पड़ता है. गांव के सरपंच नरेश कुमार ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में 20 से 25 मौतें हो चुकी है.

इनमें से 4 युवा थे जिनको इस महामारी ने अपने लपेटे में ले लिया. डीसी से गांव वालों ने पीएचसी बनवाने की मांग की लेकिन गांव सिविल अस्पताल भिवानी के 8 किलोमीटर के दायरे में आता है लिहाजा पीएचसी नहीं बन सकती. ग्रामीणों ने अपने स्तर पर गांव में सैनेटाइजेशन और मुनादी करवा दी.

गांव मुंढाल खुर्द

गांव में नंदू पंडित के घर सफेद चादर बिछी हुई थी. पुछने के लिए पहुंचे तो पिता ने रोते हुए बताया कि मेरा 25 साल का बेटा हेल्थ डिपार्टमेंट की लापरवाही से मारा गया. पिता ने बताया कि दो दिन लगातार बुखार होने से छाती में जकड़न हुईं और ऑक्सीजन का लेवल गिरने लगा. बेटे को भिवानी सिविल अस्पताल में नेताओं की सिफारिश पर मुश्किल से बेड मिला. अचानक सुबह ऑक्सीजन का सिलेंडर खत्म हो गया तो मेरी पत्नी ने रोते हुए स्टाफ से ऑक्सीजन सिलेंडर की मांग की. लेकिन स्टाफ ने सिलेंडर नहीं दिया. आखिरकार बेटे ने हेल्थ डिपार्टमेंट की लापरवाही से जुझते हुए दम तोड दिया.

नंदू पंडित जैसा दर्द लेकर पता नहीं भिवानी जिले में कितने परिवार हेल्थ सिस्टम को कोस रहे होंगे. गांवों में सीएचसी और पीएचसी है लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर वहां कुछ भी नहीं है. गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं दम तोड़ती नजर आईं. लोगों को इलाज के लिए रोहतक पीजीआई या हिसार के अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है. गांव के सरपंच ने बताया कि पिछले 25 दिनों में 62 मौतें हो चुकी है.

मुंढाल गांव से पूर्व विधायकों और मंत्रियों का नाता है लेकिन फिर भी गांव में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है. इनमें उपप्रधानमंत्री रहे चौधरी देवीलाल के समधी चौधरी टेकराम इसी गांव से संबंध रखते हैं. गांव में सब हेल्थ सेंटर है जो मंदिर की बिल्डिंग में चल रहा है. सरकार से हस्पताल बनवाने के लिए जगह देने को भी तैयार हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है. मौतों का आंकड़ा बढ़ा तो अपने स्तर पर ग्रामीणों ने सेल्फ लाकडाउन लगाया. वैक्सीन लगवाने के लिए 12 किलोमीटर दूर सीएचसी सेंटर धनाना जाना पड़ता है. प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग की तरफ़ से टेस्टिंग व मॉनिटरिंग के लिए कोई टीम गांव में नहीं आई है.

गांव धनाना

कहने को तो गांव में सीएचसी बनीं हुईं है लेकिन डॉक्टर एक भी नहीं है. अंदर जाकर देखा तो हेल्थ वर्कर मोबाइल देखने में व्यस्त थे. उनसे जब डॉक्टर्स के आने के बारे में कुछ पुछना चाहा तो उन्होंने बताने से मना कर दिया.
गांव के सरपंच से बात की गई तो उन्होंने बताया कि पिछले कुछ दिनों से करीब 60 से 70 मौतें हो चुकी है. अभी तक सैंपलिंग, टेस्टिंग के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव में नहीं आई है. किसी को कुछ ज्यादा दिक्कत होती है तो भिवानी का रुख करना पड़ता है.

गांव गोलागढ

पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल के पैतृक गांव गोलागढ में कोरोना महामारी से बचाव हेतु ग्रामीणों द्वारा अपने स्तर पर की गई समझदारी का असर देखने को मिला. गांव में कोरोना से अभी तक किसी की जान नहीं गई है. कोरोना की दूसरी पीक के दौरान 8 केस सामने आएं थे लेकिन उन्होंने खुद को आइसोलेट करते हुए गांव में संक्रमण को फैलने से रोका. ग्रामीणों ने बताया कि गांव में 30 फीसदी लोगों को वायरल फीवर है लेकिन उसके लिए आशा वर्कर व एमपीएचडब्ल्यू की ड्यूटी लगी हुई है. गांव के सरकारी स्कूल में 10 बेड का आइसोलेशन वार्ड भी स्वास्थ्य विभाग की तरफ़ से बनाया गया है. हालांकि गांव के लोगों को आज भी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए 27 किलोमीटर दूर भिवानी हस्पताल ही जाना पड़ता है.

गांव ढाणी रहीमपुर

राजस्थान की सीमा पर स्थित हरियाणा का यह आखिरी गांव है. भिवानी से 62 किलोमीटर दूर इस गांव की आबोहवा में दूर-दूर तक कोरोना का असर नहीं नजर आया. ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने खुद को ही लॉकडाउन कर लिया है. गांव वालों का कहना था कि तीन किलोमीटर दूर लोहारू तक भी गांव वालों ने जाना छोड़ दिया तो कोरोना आएगा कहा से. एक 70 वर्षीय वृद्धा की मौत हुई थी लेकिन उनकी कोरोना रिपोर्ट भी निगेटिव थी. सब्जी व अन्य जरूरत की चीजें गांव में मिल रही है तो बाहर जाकर क्यूं खतरा मोल लिया जाएं. गांव के सरपंच ने बताया कि गांव में सेनेटाइज करवा दिया गया है. गांव में बुखार, खांसी जुखाम आदि के भी कोई विशेष लक्षण वाले मरीज नहीं है.

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