हरियाणा की सियासी पिच पर आसान नहीं बैटिंग, बड़े- बड़े दिग्गज हो चुके हैं क्लीन बोल्ड

चंडीगढ़ | राजनीति में सब- कुछ संभव है. जनता की मेहरबानी हो जाए तो आदमी देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंच सकता है. ठीक इसके उल्ट ऐसा भी हैं कि राजनीति में बड़े से बड़ा धुरंधर भी करारी हार का स्वाद चख सकता है. राजनीति में जनता- जनार्दन सर्वोपरि है.

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रोहतक और करनाल में सबसे ज्यादा उलट- फेर

हरियाणा की राजनीति की बात करें तो यहां के मतदाताओं ने कई बड़े उलटफेर किए हैं. सबसे ज्यादा चौंकाने वाले परिणाम करनाल और रोहतक की धरती ने दिए हैं. रोहतक के वोटर्स काफी मुखर हैं. साथ देने पर आएं तो खुलकर निभाते हैं और विरोध करने पर उतारू हो जाएं, तो डटकर आमने- सामने का मुकाबला करते हैं.

इसके विपरित, करनाल के वोटर्स यहां की मिट्टी की तरह ही काफी नरम हैं और अपने इरादे जाहिर नहीं करते हैं. सभी नेताओं का पूरा ख्याल रखते हैं, लेकिन जब वोट डालने की बारी आती है तो जोर का झटका धीरे से देते हैं. इसी उलटफेर ने कई नेताओं का सियासी वजूद खत्म कर दिया और आज उनके सामने खुद को या अपनी पार्टी को बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है.

अपने ही गढ़ में हार गए थे हुड्डा

बेशक रोहतक लोकसभा क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री भुपेंद्र हुड्डा का गढ़ रहा हो लेकिन पिछले लोकसभा चुनावों में BJP के अरविंद शर्मा ने इस गढ़ को ढहाकर जीत हासिल की थी. उन्होंने दीपेंद्र हुड्डा को पटखनी दी. इसी प्रकार सोनीपत से बीजेपी प्रत्याशी रमेश कौशिक ने भी भुपेंद्र हुड्डा को पटखनी देकर जीत का स्वाद चखा था.

भजनलाल की टूट गई थी पीएचडी

करनाल के मतदाताओं ने राजनीति के पीएचडी और 3 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय चौधरी भजनलाल की डिग्री तोड़ने का काम किया था. 1999 के लोकसभा चुनावों में आईडी स्वामी ने भजनलाल को 1,47,854 वोट से हराकर केंद्र सरकार में गृह राज्यमंत्री का पद हासिल किया और आम से खास हो गए, जबकि इस झटके के बाद भजनलाल राजनीति से उबर नहीं पाए. मोदी सरकार में विदेश मंत्री रही सुषमा स्वराज को करनाल के मतदाताओं ने लगातार 3 बार हराने का काम किया है.

पहले उपप्रधानमंत्री बनाया, फिर 3 बार हराया

चौधरी देवीलाल 1989 के लोकसभा चुनावों में राजस्थान के सीकर और हरियाणा की रोहतक लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में थे. दोनों सीटों पर जीत दर्ज कर संसद पहुंचे. इसके साथ ही, जनता दल की सरकार में उन्हें उपप्रधानमंत्री बनाया गया. चौधरी देवीलाल को दोनों में से एक सीट छोड़नी थी, तो उन्होंने रोहतक लोकसभा सीट को छोड़ दिया.

ताऊ की सबसे बड़ी भूल

राजनीतिक के पंडित मानते हैं कि यह ताऊ की सबसे बड़ी सियासी भूल थी और उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. रोहतक की सीट छोड़ने के चलते यहां की जनता इतनी नाराज हुई कि इसके बाद 3 बार उन्हें इस सीट से 1991, 1996, और 1998 में हार का सामना करना पड़ा. खास बात ये रही उनको हराने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा उनसे उम्र और राजनीतिक तर्जुबे में काफी कम थे. इसके बाद, हुड्डा बड़े नेता के रूप में उभरे और 2005 में कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें हरियाणा प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया.

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