करनाल के मुकेश ने छोड़ी सरकारी नौकरी, अब खीरा की खेती से कमा रहा लाखों

करनाल | आज के समय में हर कोई युवा सरकारी नौकरी चाहता है. मगर एक युवा ऐसा भी है, जिसने सरकारी नौकरी छोड़कर लाखों रुपये महीने कामना आरंभ किया है. हरियाणा के करनाल जिले के छापरी गांव निवासी युवा किसान मुकेश कुमार अपनी 45 हजार रुपये की सरकारी नौकरी छोड़कर नेट हाउस लगाकर खेती कर रहे हैं. मुकेश ने बताया कि पहले वह हरियाणा बोर्ड में नौकरी करता था. इसलिए गर्मी के मौसम में खीरे की मांग को देखते हुए, मैंने दो साल पहले एक नेट हाउस स्थापित किया और खेती शुरू की. अगर इससे कोई फायदा हुआ तो इस काम को आगे बढ़ाया गया.

Karnal Kisan

2 लाख तक की हो रही बचत

आज उनके पास लगभग 4 नेट हाउस हैं और हम भविष्य में दो और नेट हाउस स्थापित करने के बारे में भी सोच रहे हैं. क्योंकि इस काम से उन्हें न सिर्फ अधिक मुनाफा हुआ है बल्कि वे संरक्षित खेती कर अधिक लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं. मुकेश कुमार इस खीरे को दिल्ली- चंडीगढ़ जैसे बड़े शहरों में भेजते हैं जहां इसकी मांग भी काफी है. मौजूदा रेट की बात करें तो रेट 15 रुपये प्रति किलो है. अगर खर्च की बात करें तो एक नेट हाउस पर ढाई से तीन लाख रुपये खर्च होते हैं. इसके बाद, 2 लाख रुपये तक की बचत की जा सकती है.

सरकार से मिल रही सब्सिडी

मुकेश ने बताया कि सबसे पहले हमें इसमें सरकार से 65 फीसदी सब्सिडी मिली. अब उस सब्सिडी को बढ़ाकर 50% कर दिया गया है लेकिन इसके बावजूद भी बहुत सारे अच्छे काम हो रहे हैं. अगर कोई भी युवा संरक्षित खेती करना चाहता है तो सबसे पहले उसे नेट हाउस के बारे में जानना होगा. ड्रिप सिंचाई क्या है, इन सबके बारे में जानकारी होनी चाहिए. अगर किसान भाई इस दिशा में आना चाहते हैं तो वे इसके बारे में ट्रेनिंग भी ले सकते हैं जहां से उन्हें अच्छी जानकारी मिलेगी.

ऐसे करें खीरे की खेती

खीरे को विभिन्न मौसमों के लिए उपलब्ध किस्मों के अनुसार पूरे वर्ष उगाया जा सकता है. इसे लगाने का एक तरीका है. दो उठे हुए क्यारियों के बीच की दूरी 4 फीट होनी चाहिए तथा एक ही पंक्ति में 30 से 40 सेमी की दूरी रखनी चाहिए क्योंकि दूरी पर बीज बोये जाते हैं. खीरे के पौधों को प्लास्टिक की रस्सी की सहायता से ऊपर की ओर लपेटा जाता है. इस प्रक्रिया में प्लास्टिक की रस्सियों को एक छोर पर पौधों के आधार पर और दूसरे छोर पर लोहे के तारों को ग्रीनहाउस में बिस्तरों से 9- 10 फीट की ऊंचाई पर बांध दिया जाता है.

पौधों के लिए खाद और पानी की मात्रा मौसम और जलवायु पर निर्भर करती है. आमतौर पर इसे गर्मियों में प्रतिदिन और सर्दियों में 2- 3 दिनों के अंतराल पर दिया जाता है. उर्वरकों को पानी में मिलाकर ड्रिप सिंचाई प्रणाली के माध्यम से दिया जाता है. बुआई के 40 दिन बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है. संरक्षित खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे पानी की काफी बचत होती है क्योंकि इसमें पानी केवल पौधों की जड़ों तक ही पहुंचता है. ड्रिप सिंचाई से पानी पौधों की जड़ों तक पहुंचता है.

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