Special Story: युगों-युगों से चला आ रहा नारी का संघर्ष, जिम्मेदार कौन???

नई दिल्ली, Special Story | ऐसा माना जाता है कि हर युग में अहिंसा, विनाश का कारण स्त्री या जमीन रही है. आप किसी भी युग का इतिहास उठाकर देख लें आपको इसका उदाहरण मिल जाएगा. चाहे वो राम राज्य में सीता का अपहरण हो या फिर महाभारत में द्रौपति का चीरहरण वजह स्त्री ही रही है. ठीक ऐसा ही इस युग में भी होता आ रहा है. स्त्री को हर दृष्टिकोण से संघर्षभरा जीवन ही जीना पड़ता है. महिलाओं को उचित सम्मान दिलाने के लिए तो स्वयं भगवान राम, कृष्ण को भी धर्म युद्ध करना पड़ा था.

Nari Sangharsh

कई रिश्ते निभाती है स्त्री

स्त्री का जन्म सबसे पहले बेटी के रुप में होता है. इस दौरान उसको और भी कई सारे रुप में रिश्ते निभाने पड़ते हैं जैसे – बहन, पत्नी, बहु. इसके बाद उसके जीवन में एक क्षण ऐसा आता है जब वो एक नया जीवन अपनी कोख से प्रदान करती है. इस दौरान उसे असहनीय पीड़ा सहना पड़ता है. इसके बाद उसके जीवन में एक पड़ाव ऐसा आता है जब वो सास, दादी, नानी का किरदार निभाती है. इस पूरी जीवनशैली में उसे हर मोड़, पड़ाव पर समाज, परिवार से संघर्ष करना पड़ता है.

महिला के ‘नहीं’ को पुरूष समझते हैं ‘हां’

नारी के बिना तो जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती लेकिन फिर भी नारी की एक नहीं चलती. परिवारवाले अगर एक कदम उठाना भी चाहते हैं तो समाज वाले उनके कदम को जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयास करते हैं. एक दौर ऐसा भी आया था जिस वक्त महिलाओं को केवल चूल्हा, चौका और भोग की वस्तु समझा जाता था. स्त्रियों की इस दशा के लिए अब तक समाज के सभी वर्ग जिम्मेदार हैं, जिनमें स्त्री जाति खुद भी शामिल है.

इन दिनों लोग अपनी सोच को बदल रहे हैं. बेटी को पढ़ाया जाता है, उनकी मर्जी से शादी करने की इजाजत होती है लेकिन तब भी उन्हें कई प्रकार से संघर्ष करने पड़ते हैं. आज के दौर में महिलाएं अगर हंस कर किसी पुरूष से दो-चार बात कर ले तो वो इसे अपने लिए आमंत्रण समझ लेते हैं. जिसका हमेशा गलत मतलब निकालते हैं और यदि वो अपने मकसद में कामयाब ना हो पाए तो वो लड़की के चरित्र पर ही सवाल उठा देते हैं. अक्सर पुरूष महिलाओं के यौन संबंध में ना का मतलब भी हां ही समझते हैं.

नियम-कानून बनने के बावजूद नहीं थम रहा अपराध

वहीं, देश और दुनिया में स्त्रियों के साथ होने वाले अपराधिक घटनाओं से निपटने के लिए बहुत सारे नियम-कानून बनाए गए है और अभी भी लगातार बनाए जा रहे हैं लेकिन अब तक ऐसे अपराध ना ही रुक रहे ना ही महिलाओं पर अत्याचार कम हो रहा. जब भी कोई ऐसा कोई मामला घटता है तो लोग जोश-जोश में परिवारवालों और लड़की को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर कैंडल लेकर उतर जाते हैं और नारे लगाते हैं, जिसका नतीजा 10 साल बाद, 15 साल बाद मिलता है. तब तक वो अपराधी अपनी आधी जिंदगी मजे में गुजारता है.

ऐसे में देश-दुनिया में घटने वाले मामले को हवा मिलती रहती है और लगातार दुष्कर्म, बलात्कार के बाद हत्या करने के मामले बढ़ रहे हैं. इन दिनों मजहब बदलकर स्त्री की भावनाओं के खिलवाड़ करना एक आम बात हो चुकी है. पहले लोग धर्म परिवर्तन करवाते हैं बाद में उसे मौत के घाट उतार देते हैं.

स्वयं भगवान राम- कृष्ण को करना पड़ा था धर्म युद्ध

राम और कृष्ण के काल में शायद स्त्री जाति के साथ इतनी ज्यादत्ती नहीं हुई होगी जितनी आज के दौर में है. पुरुष समाज कलंकित हो चुके है कि जन्म लेने वाली बच्ची से लेकर 60-70 साल की महिलाओं को भी हवस की नजरों से ही देखते हैं. ऐसे हजारों उदाहरण है जिनमें अपराधियों ने हैवानियत की सारी हदों को पार कर नीचता के उच्चतम स्तर को हासिल किया है. देखा जाए तो इसमें गलती हमारे कानून की भी है जो महिलाओं की दृष्टिकोण से कोई मतलब नहीं रखता. जिसके कई सारे ऐसे उदाहरण हम आपको बताते हैं जिसे सुनकर आप हैरान हो जाएंगे…

आत्मा को झकझोर देने वाले मामले

अरूण शानबाग रेप केस: साल 1973 में मुंबई के अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स के साथ एक सोहन लाल नाम के सफाई कर्मचारी ने आप्रकृतिक सेक्स Sodomy किया लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आप्रकृतिक संबंधो को उस समय अपराध ही नहीं माना जाता था. आरोपी सोहनलाल के खिलाफ केवल लूट और हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया, जिसमें उसे सात साल की सजा हुई और सजा पूरा करने के बाद वह बरी हो गया और बाकी जिंदगी चैन से काटी लेकिन अरूण शानबाग 42 साल तक कोमा में रहीं.

हद तो तब हुई जब मुंबई BMC के हॉस्पीटल ने सिर्फ एक बेड को खाली कराने के लिए कोमा में पडी अरूणा को अस्पताल से बाहर निकालने की दो बार कोशिश की लेकिन उनकी साथी नर्सो ने ऐसा नहीं होने दिया. 42 साल तक नर्क भोगने वाली अरूणा को समाज और कानून के अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए साल 2011 में उनकी एक दोस्त ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दोस्त के लिए इच्छा मुत्यु की मांग की, जिसे पहले तो कोर्ट ने स्वीकार कर लिया लेकिन कुछ महीने बाद अपने फैसले को रद्द कर दिया. जिसके बाद 15 मई 2015 को अरूणा ने BMC के हॉस्पीटल में अंतिम सांस ली.

दलित युवती के साथ दो सिपाहियों ने किया बलात्कार: एक मामला साल 1972 में हुआ. जब एक दलित युवती के साथ दो सिपाहियों ने बलात्कार किया, जिसमें पुलिस ने मामला दर्ज कर दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और दोनों को न्यायालय के समक्ष पेश किया लेकिन न्यायालय का फैसला चौंकाने वाला था. न्यायालय ने दोनों सिपाहियों को बरी कर दिया. दरअसल, न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि युवती के कई और लोगों के साथ भी संबंध थे इसलिए यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता.

यह पूरा मामला एक अनाथ लडकी का था, जो महाराष्ट्र के गढ़चिरौली क्षेत्र के देशाईगंज इलाके में रहती थी. जिसका नाम मथुरा था जो कि अनाथ आदिवासी लड़की थी. जिसके दो बड़े भाई भी थे. मथुरा अपना घर चलाने के लिए घरों में बर्तन धोने का काम करती थी. जहां उसकी मुलाकात अशोक नाम के लड़के से हुई और दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और शादी करने चाहता थे. जिसकी भनक मथुरा के भाइयों को लग गई. मथुरा के भाई उनकी शादी के खिलाफ थे जिसके चलते उन्होंने अशोक पर अपहरण का मामला दर्ज करवा दिया.

जिसके बाद दोनों परिवारों को मामले की जांच के लिए थाने में बुलाया गया. वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद उन्हें घर भेज दिया और मथुरा को थाने में ही रोक लिया. जिसके बाद रात को दोनों सिपाहियों ने मथुरा के साथ बलात्कार किया और मथुरा को डरा धमका कर मामले को दबाने की कोशिश की लेकिन मथुरा ने हिम्मत दिखाई और दोनों सिपाहियों के खिलाफ मामल दर्ज कर दिया.

मामला दर्ज होने के बाद पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और मथुरा का वर्जिनिटी टेस्ट करावाया और वर्जिनिटी टेस्ट कराया. वर्डजिनिटी टेस्ट के आधार पर सेशन कोर्ट ने न्यायाधीशों ने फैसला सुनाया कि चूंकि मथुरा शादी से पहले वर्जिनिटी टेस्ट में फेल हो गई है. इसका मतलब यह है कि वह संभोग करने की आदी है और उसने दोनों पुलिस वालों के साथ अपनी मर्जी से संबंध बनाए थे इसलिए दोनों आरोपी निर्दोष हैं और कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया.

जो ये बताता है कि उस समय के समाज की मानसिक स्थिती क्या थी. जब समाज का नृतेत्व करने वाले न्यायाधीश ही किसी के वर्जिनिटी टेस्ट को सही और गलत का आधार मानते हों तो वह समाज किस दिशा और दशा में रहा होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

महिला पत्रकार के साथ गैंगरेप: साल 2015 में एक महिला पत्रकार के साथ 5 हैवानों ने मिलकर गैंगरेप किया. जिस वक्त महिला 22 साल की थी. ऐसी ही एक घटना साल 1992 में एक महिला के साथ हुआ था जब वो बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाना शुरू की तब उससे ऊंची जाति के 5 लोगों ने मिलकर उसके साथ दुष्कर्म किया लेकिन इस मामले को भी दबा दिया गया.

निर्भया रेप केस: जिसके बाद एक और मामला ने पूरे देश को न्याय के लिए एकत्रित होना पड़ा था. जब 16 दिसंबर 2012 की रात को दिल वालों की दिल्ली में एक लड़की 6 लोगों की हवस का शिकार हो गई. दरअसल, चलती बस में के साथ बहुत ही बेरहमी से रेप किया. इस दौरान उनके नाजुक अंगों को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचाया था. बता दें लड़की ने तीसरे दिन दम तोड़ दिया था. इस केस को निर्भया रेप केस के नाम से जाना जाता है. जिसके बाद लोगों का गुस्सा इस कदर फूटा कि सरकार को कानून में बदलाव करना पड़ा लेकिन इसका कोई असर आजतक देखने को नहीं मिला.

महिला डॉक्टर के साथ रेप: वहीं, हैदराबाद में महिला डॉक्टर के साथ रेप कर उन्हें जलाकर मार डाला. उस वक्त महिला क्लिनिक से घर वापस आ रही थी. तब अचानक रास्ते में उनकी स्कूटी पंचर हो गई. इसके बारे में उन्होंने अपनी बहन को बताया, जिस पर बहन ने स्कूटी को टोल प्लाजा पर छोड़ने को कहा और कैब लेकर घर आने की सलाह दी. इससे पहले वो कुछ सोच पाती दो लोगों ने जबरन उनकी मदद के बहाने इस घटना को अंजाम दे गए.

श्रद्धा मर्डर केस: एक बार फिर श्रद्धा मर्डर केस सामने आया है. जो दिल को दहला देने वाली घटना है. अपराधी अफताब ने उसके 35 टुकड़े किए और अलग-अलग जगहों पर उसे ठिकाने लगाया लेकिन इस मामले में कानून बड़ी ढ़ील देती दिखाई दे रही है.

कानून जिम्मेदार

दरअसल, हमारे देश में कानून का डर केवल आम जनता को सताता है क्योंकि ऐसी वारदातों को अंजाम देने वाले अपराधी तो जानते ही हैं कि हमारे गुनाह तो कोर्ट माफ ही कर देता है. इसके लिए जिम्मेदार हमारा कानून ही होता है जो कि ऐसी घटनाओं को खुलेआम हवा दे रहा है. कहते हैं ना कानून अंधा होता है. यह वाक्य एक दम सही साबित हो जाती है जब न्याय के दरवाजे से लोगों को निराशा हाथ लगती है.

कई लोगों की अवधारणा होती है कि लड़की का पहनावा-ओढ़ावा, उसकी दोस्ती इन सबका कारण है ऐसा करके वो संबंध बनाने के लिए आमंत्रण दे रही है लेकिन ऐसा नहीं होता है. लड़की की आजादी को लोग गलत नजरिए से देखते हैं और इसको समझ पाना किसी के भी बस की बात नहीं होती इसलिए लड़कियों को हर जगह संघर्ष भरा जीवन जीना पड़ता है.

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