ओमप्रकाश चौटाला की घोषणा से किसान आंदोलन के नेताओं की बढ़ी चिंता, क्या आंदोलन राजनीतिक दलों से दूर है?

चंडीगढ़ । आंदोलन के मंच पर किसी राजनीतिक व्यक्ति को स्थान नहीं दिया. यही कारण रहा कि आंदोलन को समर्थन देने के लिए समय समय पर जो भी नेता पहुंचे, चाहे अभय चौटाला रहे हो, या कांग्रेस की कुमारी सैलजा, सब मंच के नीचे बैठकर वापस लौट आए.

Om Prakash Chautala

कृषि सुधार कानून के विरोध में आंदोलन कर रहे संगठनों के नेता मुश्किल में है. कारण है कई बुजुर्ग ओमप्रकाश चौटाला रिहा हो चूके हैं. और उन्होंने आंदोलनकारियों का उत्साह बढ़ाने के लिए हरियाणा दिल्ली सीमा पर चल रहे धरना स्थलों पर जाने की घोषणा कर दी है. आंदोलन के नेताओं की परेशानी का सबब यही है कि बुजुर्ग चौटाला को वे मंच पर आने से कैसे रोकेंगे? उन्हें मंच पर स्थान दिया तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी.

अब तक उन्होंने यही कहा है, कि आंदोलन के मंच पर किसी राजनीतिक व्यक्ति को स्थान नहीं दिया जाएगा. यही कारण रहा कि आंदोलन को समर्थन देने के लिए समय समय पर जो भी नेता पहुंचे, चाहे अभय चौटाला रहे हो, या कांग्रेस की कुमारी सैलजा. अथवा कोई अन्य सब मंच के नीचे बैठकर वापस लौट आए. लेकिन बुजुर्ग चौटाला मंच के नीचे बैठेंगे इसमें संशय है, और अगर बैठ भी जाएं तो उनके समर्थन को नागवार गुजरेग.

हरियाणा के कुछ जिलों में जहाँ आंदोलन का प्रभाव है वहाँ आंदोलन के विरोध में ऐसा वातावरण बन जाएगा कि आंदोलन सीमा पर लगाए गए तंबू में ही सिमटकर रह जाएगा. हां बुजुर्गवार को उत्तर-प्रदेश दिल्ली सीमा पर गाजीपुर में चल रहे धरने पर अवश्य मंच मिलेगा. ऐसा इसलिए कि वहाँ भारतीय किसान यूनियन प्रभावी है और राकेश टिकैत के पिता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत बुजुर्ग चौटाला के मित्र रहे हैं, दोनों परिवारों में आत्म संबंध हैं. बंधु नरेश और राकेश दोनों चौटाला साहब को पिता तुल्य मानते हैं और वैसा ही सम्मान देते हैं.

ऐसा नहीं कि हरियाणा में जो धरने चल रहे हैं. उनमें राकेश शिकायत का प्रभाव नहीं है. और नेताओं जैसे गुरनाम चढूनी योगेंद्र यादव दर्शनपाल आधे से अधिक है. लेकिन धरनास्थल मंच उनके पास ही है. भले ही पंडाल में तो राकेश समर्थकों का बोलबाला हो. पंजाब राकेश टिकैत के अलावा जो नेता हैं उन्हें बुजुर्ग चौटाला से कोई एलर्जी हो ऐसा नहीं है. लेकिन बुजुर्गवार मंच पर बुलाते हैं तो यह हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुडा और उनके समर्थकों को नागवार गुजरेगा. आंदोलन के नेताओं की तरफ से राजनीतिक दलों के नेताओं को मंच से दूर रखने की घोषणा के कारण ये आंदोलन को कांग्रेस के समर्थन देने के बावजूद भूपेंद्र सिंह हुडा, सैलजा कभी आंदोलन स्थल पर नहीं गयी.

अभी 26 जून को आपातकाल की याद दिलाते हुए, जब चढूनी और योगेंद्र यादव के साथ कुछ लोगों ने पंचकूला में प्रदर्शन किया. तो ये कांग्रेसियों को बहुत अखरा था ज़ाहिर है कि बुजुर्ग चौटाला का आंदोलन के मंच पर आना भी उन्हें अखरेगा, और अभी तक जो कांग्रेस समर्थक या यों कहें, हुड्डा समर्थक उन्हें हर तरह से समर्थन दे रहे थे. आंदोलन का विरोध भले न करें लेकिन साइलेंट मोड में चले जायेंगे. फिर आंदोलन के नेता किस मुंह से कहेंगे? उनका आंदोलन राजनीतिक दलों से दूर है. वैसे भी राजनीतिक दलों से दूर भी कहने की बात है.

चढूनी खुद चुनाव लड़ चूके हैं. उनकी पत्नी आम आदमी पार्टी से लड़ चुकी है. योगेंद्र यादव आम आदमी पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़ चूके हैं. आम आदमी पार्टी से निकाले जाने के बाद अपनी पार्टी बना चूके हैं. राकेश टिकैत भी राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ चूके हैं. और इन सब में एक समान था ये भी है कि ये सभी चुनाव तो हारे ही जमानत भी जब्त हुई हैं. खैर यह अतीत की बात उनके सामने प्रश्न यह है. कि अब किसके बगलगीर हो चौटाला के या हुड्डा के दोनों के हो नहीं सकते चुनना किसी एक को ही पड़ेगा

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