हिसार: राखीगढ़ी में पुरातत्व विभाग को मिली बड़ी कामयाबी, हड़प्पा सभ्यता के मिले अवशेष

हिसार । हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े स्थल हरियाणा के हिसार में राखीगढ़ी को एक प्रतिष्ठित स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस बार तीन महत्वपूर्ण स्थलों की खुदाई की है. राखीगढ़ी 5000 साल पुरानी सभ्यता है. अब तक मिले अवशेषों से पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता की संस्कृति आज की भारतीय संस्कृति से काफी मिलती-जुलती है.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संयुक्त महानिदेशक संजय मंजुल ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान उक्त जानकारी दी. उन्होंने बताया कि राखीगढ़ी में अब तक केवल 3 बार ही खुदाई की गई थी, अब टीला नंबर 1, 3 और 7 पर खुदाई चल रही है. पहली बार टीला नंबर 3 पर खुदाई की जा रही है. इस समय की खुदाई के दौरान साइट नंबर एक पर ढाई मीटर चौड़ी कच्ची दीवार निकली है, जो हड़प्पा के लोगों के रहन-सहन को दर्शाती है.

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मिले ये अवशेष

खुदाई के दौरान मिट्टी की चूड़ियाँ, टेराकोटा की चूड़ियाँ, काटने के काम आने वाले ब्लेड, सोने के आभूषणों के टुकड़े और अन्य महत्वपूर्ण वस्तुएँ यहाँ मिली हैं. इसके साथ ही जानवरों के अवशेष भी मिले हैं, जिनमें मुख्य रूप से बैल, कुत्ते और हाथी शामिल हैं. लगभग यही समानताएं साइट नंबर 3 पर भी देखने को मिली हैं. आज के समय में भी अगर हम किसी आधुनिक गांव में जाएं तो पुराने जमाने की चीजें नए रूप में नजर आएंगी.

खुदाई में निकला नर कंकाल

इस बार टीले नंबर सात की खुदाई में नर कंकाल निकला है. खुदाई के दौरान मिले कंकाल के सिर के पीछे, हड़प्पा काल के कई बर्तन मिले हैं, जिनमें बर्तन, स्टैंड पर पकवान, कटोरा, ढक्कन, बड़ा बर्तन, थाली, जार, स्टैंड पर रखे जाने वाले बर्तन शामिल हैं.

मिले 2 महिलाओं के कंकाल

अब तक खुदाई में तीनों स्थलों पर कुल 38 कंकाल मिले हैं. फिलहाल सात नंबर वाली जगह पर 2 महिलाओं के कंकाल मिले हैं. इनके हाथों में चूड़ियां हैं और इनके पास से एक शीशा, मोती, चूड़ियां, खोल भी मिले हैं. यह खोल तटीय क्षेत्र में पाया गया था.इससे सिद्ध होता है कि यहाँ के लोग दूर-दूर तक व्यापार करते थे. डीएनए के लिए एक कंकाल का विश्लेषण किया गया है. इससे साबित हुआ कि वह मूल रूप से भारतीय थे.

ग्रामीणों का मिल रहा सहयोग

संजय मंजुल ने बताया कि इस खुदाई के दौरान उन्हें ग्रामीणों का पूरा सहयोग मिल रहा है. बिना ग्रामीणों के सहयोग के राखीगढ़ी का विकास संभव नहीं है. हम ग्रामीणों को साथ ले जा रहे हैं. ग्रामीणों के साथ-साथ कई संस्थाएं भी हमारी मदद कर रही हैं.

खुदाई में मिले सिंधु सरस्वती सभ्यता के साक्ष्य

टिल्लों पर चौथी बार की जा रही खुदाई में सिंधु-सरस्वती सभ्यता के प्रमाण मिले हैं. पुरातत्वविदों के अनुसार यह वह स्थान है जहाँ से सिंधु और सरस्वती नदियों का उद्गम हुआ करता था, जिसके किनारे पर हड़प्पा सभ्यता और संस्कृति का महानगर राखीगढ़ी स्थित था. अब तक की खुदाई के दौरान तीन स्थलों से अलग-अलग तरह की चीजें मिली हैं. यहाँ से सिंधु नदी व सरस्वती नदी बहती थी. जिसका उपयोग वे व्यापार के लिए भी करते थे. हालांकि अभी तक यह साबित नहीं हो पाया है कि खुदाई के दौरान मिले कंकाल इन नदियों के पहले के हैं या बाद के.

मिला पक्की दीवार व ड्रेनेज सिस्टम

खुदाई के दौरान पक्की ईंटों की चौड़ी दीवार मिली है और दीवार के साथ नीचे पक्की नाली भी मिली है. पहली बार ऐसा नाला मिला है. खांचे का आकार बिल्कुल सीधा है. आज के समय में जिस तरह से नालों से पानी निकालने का काम किया जा रहा है. पहले भी यही तरीका अपनाया गया था.

टीला नंबर एक पर मिली मुहरें

टीले नंबर एक पर कुछ मुहरें भी मिली हैं. इन मुहरों में शेरों और मछलियों के चित्र हैं. वे उनका इस्तेमाल व्यापार करने के लिए करते थे. इससे सिद्ध होता है कि देश-विदेश में बड़े पैमाने पर व्यापार होता था.

आखिर क्या है ये अंक

इस बारे में जानकारी देते हुए संयुक्त महानिदेशक संजय मंजुल ने बताया कि हम इस हड़प्पा सभ्यता को तीन भागों में बांट कर देखते हैं. नंबर 1 में पहला काल सभ्यता में किसी भी सभ्यता का सबसे प्रारंभिक काल माना जाता है. अंक दो को मध्यकालीन सभ्यता का पूर्ण या काल माना जाता है. अंक 3 को अंतिम युग की सभ्यता के अंत या अंत का समय माना जाता है.

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