जींद के छोरे ने किया कमाल, महज 19 साल की उम्र में जीता था मेडल, अब बने डिप्टी डायरेक्टर

जींद । मात्र 19 साल की उम्र में एशियंस गेम्स शूटिंग में सिल्वर मेडल जीतने वाले जींद के लक्ष्य शयोराण को प्रदेश सरकार ने खेल विभाग में डिप्टी डायरेक्टर बना दिया है. बता दे कि ओलंपिक की तैयारियों में व्यस्त लक्ष्य ने ग्रेड अधिकारी बनाने पर प्रदेश सरकार का आभार प्रकट किया है. लक्ष्य ने कहा कि उसका एक ही सपना है कि वह टोक्यो में देश के लिए मेडल जीतकर ला सके.

lakshay shoeran jind

पिता सोमबीर पहलवान ने कहा उनका बेटा बड़ा नाम कमायेगा 

युवा निशानेबाज लक्ष्य शयोराण मे शूटिंग के प्रति गजब का जुनून है. उन्होंने महज 5 साल की प्रैक्टिस में ही उन्होंने अगस्त 2018 में इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में एशियन गेम्स में शूटिंग के ट्रैम्प इवेंट में सिल्वर मेडल जीत लिया था. तब वह बाकी खिलाड़ियों के मामले में सबसे जूनियर थे. प्रदेश सरकार द्वारा उस समय इनाम के तौर पर लक्ष्य को 1.75 करोड रुपए की इनामी राशि दी गई थी. अब डिप्टी डायरेक्टर का पद देकर नौकरी का वादा भी पूरा किया गया है. बता दे कि इनके पिता सोमवीर पहलवान और मां प्रमिला भी बेटे को नौकरी मिलने से खुश है. सोमबीर कहते हैं कि लक्ष्य पूरे परिवार के लिए बहुत भाग्यशाली है. इतनी छोटी उम्र में उसने अपनी मेहनत के दम पर यह मुकाम हासिल किया है. उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही यह ओलंपिक में भी मेडल लेकर आएंगे.

इस तरह लक्ष्य ने यह मुकाम हासिल किया 

पिता सोमबीर ने बताया कि लक्ष्य ने 2013 में शूटिंग खेलना शुरू किया था. जींद में कोई भी शूटिंग रेंज नहीं थी. इसलिए दिल्ली कोचिंग के लिए छोड़ा. एयर पिस्टल की बजाय ट्रेप शूटिंग के लिए पटियाला मे भी छोड़ दिया. वहां अपनी मेहनत से जीवी मावलंकर ट्रंप शूटिंग में व्यक्तिगत स्पर्धा में गोल्ड मेडल पर कब्जा कर लिया. इसके बाद उन्होंने दिल्ली में होने वाले गेम्स में भी सिल्वर मेडल जीता. उन्हें लगा कि उनका बेटा अब बड़ा नाम कमाएगा. दोबारा से उसने दिल्ली में करणी सिंह शूटिंग रेंज में ट्रेनिंग ली. वहां रहते हुए उसने नेशनल गेम्स में गोल्ड मेडल जीता और इंडियन टीम में जगह बनाई. उनके पिता ने बताया कि जब लक्ष्य ने शूटिंग शुरू की तो उन्हें सरकार की तरफ से कोई भी सहायता नहीं मिली थी. शूटिंग काफी महंगा खेल है. बेटे की जिद की वजह से शुरू में उसे 11 लाख रुपए की विदेशी बंदूक दिलवाई . इसके बाद करीब सात लाख की दूसरी बंदूक दिलवाई.

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