करनाल के प्रगतिशील किसान सतपाल ने पेश की मिसाल, 18 साल की उम्र में की थी खेती शुरू; पढ़े स्टोरी

करनाल | हरियाणा के करनाल जिला के कैमला गांव के प्रगतिशील किसान सतपाल सिंह को खेती में नए- नए प्रयोग करने का शौक है. इन अनुभवों ने उन्हें फसल विविधीकरण की ओर प्रेरित किया और आज उन्होंने इतनी महारत हासिल कर ली है कि कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा उनकी नई किस्मों के प्रदर्शन पौधे भी सतपाल सिंह के खेत में लगाए गए हैं. जिससे न सिर्फ सतपाल को सीखने को मिलता है बल्कि आज वह सैकड़ों किसानों को खेती के संदर्भ में सलाह भी देते हैं. चौधरी सतपाल सिंह ने छोटी उम्र यानी 18 साल की उम्र में ही खेती शुरू कर दी थी. खेती की प्रेरणा पिता से मिली थी और उन्हें खेती का भी शौक था.

Karnal Farmer Satpal Singh

2001 से मिट्टी में मिला रहे फसल अवशेष

कृषि के क्षेत्र में सतपाल सिंह को कृषि अधिकारियों का भी सहयोग एवं मार्गदर्शन प्राप्त हुआ. वर्ष 2001 में कृषि अधिकारी डॉ. राजेंद्र सिंह ने सतपाल सिंह को गेहूं की फसल के अवशेषों को मिट्टी में मिलाने की सलाह दी और पराली में आग न लगाने के फायदे भी बताए. जिसके बाद, उन्होंने कभी भी फानों में आग नहीं लगाई. सतपाल सिंह ने वैज्ञानिकों को यह गारंटी भी दी है कि उन्होंने 1995 के बाद से कभी भी फसल अवशेषों में आग नहीं लगाई है. इसकी पुष्टि के लिए कोई भी अधिकारी 1995 से 2023 तक का डेटा सैटेलाइट से निकालकर निरीक्षण कर सकता है.

गेहूं के अवशेष की फसल है सर्वोत्तम

वर्ष- 2022 में किसान सतपाल ने 6 एकड़ गेहूं के अवशेष में हैप्पी सीडर मशीन से मूंग की खेती की. उन्होंने इस दौरान एक एकड़ में पारंपरिक विधि से जुताई कर मूंग की बुआई की. कृषि विज्ञान केन्द्र राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के समन्वयक डॉ. पंकज सारस्वत के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने मूंग के प्रदर्शन प्लाटों का अवलोकन कर निष्कर्ष निकाला कि जुते हुए खेत में मूंग की फसल बहुत कमजोर है लेकिन जो गेहूं के अवशेष में मूंग की बुआई की गई है वह सर्वोत्तम है. सतपाल सिंह ने इसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया है. सतपाल सिंह को गेहूं के अवशेष में बोई गई मूंग की फसल की प्रति एकड़ छह क्विंटल उपज मिली है.

फसल विविधीकरण के तहत, किसान ने कृषि विज्ञान केंद्र के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान से अरहर की संकर प्रजाति का प्रदर्शन पौधा खेत में लगाया. प्रति एकड़ 11 क्विंटल अरहर की पैदावार के साथ- साथ अरहर की फसल की ऊंचाई मात्र 4 फीट होने के कारण इस पर फली छेदक इल्ली का हमला नहीं होता था. जिसका छिड़काव करना भी बहुत आसान था.

सतपाल रखते हैं छोटे से लेकर बड़े कृषि संयंत्र

सतपाल सिंह ने अपने खेत पर खेती के सभी उपकरण जैसे सुपर सीडर मशीन, हैप्पी सीडर मशीन, रोटावेटर, थ्रेशर, डीएसआर मशीन रखी है. अभी 28 एकड़ में धान की सीधी बुआई की गई है. विविधीकरण के तहत, 5 एकड़ में गन्ने की फसल लगाई गई है. मूंग की बुआई गन्ने की कतारों में की गई है और मूंग की फसल की फली तोड़ने के बाद मूंग की फसल गन्ने की फसल के लिए खाद का काम करेगी.

शोध संस्थानों के हर कार्यक्रम में लेते हैं हिस्सा

किसान सतपाल सिंह भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल, कृषि विज्ञान केंद्र राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल और कृषि किसान कल्याण विभाग करनाल के सभी कार्यक्रमों में भाग लेते हैं. ये संस्थाएं हर मौसम में अपने फार्म पर कई प्रदर्शन भूखंड स्थापित करती हैं. वह अपने खेत में नई किस्मों के बीज तैयार कर उन्हें आसपास के गांव कल्हेड़ी, जमालपुर, डिंगर माजरा, कैमला, पनौदी के किसानों को सस्ते दाम पर बांटते हैं.

150 से अधिक किसान लेते हैं सलाह

चौधरी सतपाल सिंह के आसपास के करीब 150 किसान लगातार सतपाल से सलाह- मशविरा करते रहते हैं. इनमें जसविंदर सिंह, कृष्ण कुमार, जीत सिंह का कहना है कि सतपाल सिंह के नए प्रयोगों से हमें काफी फायदा हुआ है. चौधरी सतपाल सिंह से सीखकर हमारा उत्पादन भी बढ़ा है.

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