बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा वाली कहावत रोहतक पुलिस पर बैठी फिट, जानें क्या हैं मामला

रोहतक | रोहतक पुलिस का एक अजीबो-गरीब कारनामा सामने आया है. एक पुरानी कहावत है कि बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा. यह कहावत रोहतक पुलिस पर एकदम फिट बैठती है. रोहतक में हुए चौहरे हत्याकांड में इस्तेमाल किए गए जिस हथियार को पुलिस 16 साल से इधर-उधर ढूंढ रही थी, वह थाने के मालखाने में ही पड़ा मिला.

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इसमें बड़ी लापरवाही यह भी सामने आई है कि उस समय मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने हथियार तो बरामद कर लिया, लेकिन उसे पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज नहीं करवाया. जिसके बाद अब पुलिस ने हथियार की बरामदगी दिखाकर आरोपितों को न्यायिक हिरासत में भेजा है. हालांकि पुलिस ने कोर्ट में पेश किए गए रिमांड में मालखाने से बरामदगी का जिक्र नहीं किया है.

यूं समझें पूरा मामला

जून 2006 में रोहतक जिले के गांव शिमली में आपसी रंजिश के चलते एक परिवार पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर सगे भाई ठंडीराम, प्रेम, राजेश और एक अन्य शख्स काले को मौत के घाट उतार दिया गया था. यह मामला सदर थाने में दर्ज हुआ था और इस हत्याकांड में तीन सगे भाई बहादुर सिंह, सतपाल और धर्मपाल की भूमिका सामने आई थी, जो वारदात से पहले ही परिवार समेत गांव छोड़कर चले गए थे.

रोहतक एसटीएफ ने तीनों आरोपित भाईयों को करीब 16 साल बाद 1 अप्रैल को गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल हुई थी. सदर थाना पुलिस ने 2 अप्रैल को तीनों आरोपितों को कोर्ट में पेश कर चार दिन के रिमांड पर लिया था. पुलिस ने कोर्ट में दलील दी कि उन्हें घटनास्थल की निशानदेही करानी है और साथ ही हत्याकांड में प्रयुक्त हथियार बरामद करने हैं.

इस तरह बरामद हुई 16 साल पुरानी लाइसेंसी बंदूक

रिमांड के दौरान पुछताछ में आरोपियों ने पुलिस को बताया कि वारदात को अंजाम देने के बाद कट्टे नहर में फेंक दिए गए थे जबकि उनकी लाइसेंसी बंदूक और कारतूसों को पुलिस ने उसी वक्त बरामद कर लिया था. आरोपितों के इस कबूलनामें के बाद पुलिस के पांव नीचे से जमीन खिसक गई. पुलिस ने मामले से जुड़ा सारा रिकॉर्ड खंगाल डाला लेकिन पूरे रिकॉर्ड में कही पर भी यह दर्ज नहीं था कि आरोपितों की दोनाली बंदूक बरामद हुई थी.

ऐसे में पुलिस ने मालखाने की तलाशी ली और काफी छानबीन के बाद मालखाने से बंदूक बरामद हुई. साथ कारतूस भी बरामद किए गए. यानि कि 16 साल तक थाने के मालखाने में बंदूक और कारतूस रखे रहें, लेकिन किसी ने भी यह जानना उचित नहीं समझा कि आखिर यह बंदूक किस मामले से जुड़ी है और रिकार्ड में दर्ज क्यों नहीं है.

हालांकि साल 2013 में भी इन आरोपितों की ओर से कोर्ट में एप्लीकेशन दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि हत्याकांड के दूसरे दिन काफी संख्या में पुलिसकर्मी उनके घर आए थे, जिन्होंने मौके से लाइसेंसी बंदूक और कारतूस बरामद किए थे. लेकिन उसे रिकार्ड में नहीं दिखाया गया.

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