ई-रिक्शा चलाती है पैरालाइज्ड सविता, बोलीं- अजीब तरीके से देखते हैं लोग, फर्क नहीं पड़ता, बच्चों का भविष्य सुधारना है

सिरसा । इंसान सपने देखता है,  लेकिन समय की करवट के आगे उसके सपनों का कोई वजूद नहीं रहता. जब वक्त बदलता है तो परिस्थितियों के आगे इंसान को अपने सपने भूलने पड़ते हैं और पेट पालने के लिए कुछ करना पड़ता है. सिरसा की सविता के भी बड़े सपने थे,  लेकिन जीवन में आए संकट का सामना करने के लिए उसे ई रिक्शा चलाने पड़ रही है. ई रिक्शा चलाकर वह अपने बच्चों की परवरिश कर रही है.

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ई रिक्शा चलाकर सविता कर रही है अपने बच्चों की परवरिश

मां बाप ने सविता की शादी की,  जिसके बाद ससुराल वालों की मारपीट  सहन ना कर पाने के बाद वह अपनी दो बेटियों व एक बेटे को लेकर बहादुरगढ़ चली गई. किसी तरह उसने वहां अपना घर बसाया, लेकिन समय की मार ने सविता को नहीं बख्शा. कोरोना से लगे लॉकडाउन के कारण सब कुछ बंद हो गया. जिससे उसका काम भी बंद हो गया. बहादुरगढ़ छोड़ वापिस 20 साल बाद सिरसा आई, तो मां-बाप ने भी स्वीकार नहीं किया. जिसके बाद सविता ई रिक्शा चला कर अपना घर चला रही है. 2017 में सविता का एक्सीडेंट हुआ था,  जिसके बाद सविता पैरालाइज है. सविता की दो बेटियां व एक बेटा है. सविता की एक बेटी नौवीं कक्षा में और दूसरी लड़की ग्रेजुएट है.

सविता ई रिक्शा चलाकर अपने बच्चों की पढ़ाई व घर दोनों चला रही है. वही सविता ने बताया कि घर में मेरे पिता है,  भाई है लेकिन मेरे साथ कोई भी खड़ा नहीं है. जिसकी वजह से मै बच्चों की परवरिश के लिए ई रिक्शा चला रही हूं. सविता ने बताया कि वह ससुराल वालों के प्रताड़ना से तंग आकर बहादुरगढ़ चली गई. वहां मेरा कोई भी अपना रहने वाला नहीं था. जैसे तैसे करके मैंने अपनी बेटियों के नाम से टिफिन का काम शुरू किया. लेकिन लॉक डाउन की वजह से वह भी बंद हो गया.

सवारियों के व्यवहार को लेकर सविता ने बताया कि लोग बहुत कुछ अजीब तरीके से देखते हैं कि एक औरत रिक्शा चला रही है. मुझे इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मुझे मेरे बच्चों का भविष्य सुधारना है. सविता ने कहा कि भीख मांगने से ज्यादा अच्छा मेहनत करना है. उन्होंने कहा कि दूसरे ई रिक्शा चालक भी मेरा बहुत सहयोग करते हैं. मैं जहां कहीं से भी सवारी लूं, तो मुझे कोई नहीं रोकता.

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