हरियाणा की सविता पूनिया को मिली इंडियन हॉकी टीम की कमान, जानिए क्या है संघर्ष की कहानी

चंडीगढ़ । भुवनेश्वर में 26 फरवरी को होने वाले एफआईएच महिला प्रो लीग मैचों को लेकर भारतीय महिला हॉकी टीम ने कमर कस ली है. भारतीय महिला हॉकी टीम भुवनेश्वर में प्रैक्टिस कर रही हैं और सुबह शाम अच्छे प्रदर्शन के लिए दिन रात पसीना बहा रही है. महिला हॉकी लीग के लिए हॉकी प्लेयर सविता पूनिया को भारतीय महिला हॉकी टीम की कमान सौंपी गई है. इसके अलावा टीम में 22 अन्य खिलाड़ी चुने गए हैं. वही टीम की उप कप्तान के रूप में दीप ग्रेस को चुना गया है.

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सविता पूनिया के कप्तान बनने से पैतृक गांव में जश्न का महौल

वही सविता पूनिया को भारतीय हॉकी टीम की कमान मिलने से उनके पैतृक गांव में जश्न का माहौल है. सविता को मिली इस जिम्मेदारी को लेकर उनके पिता महेंद्र पूनिया ने अपनी बेटी को आशीर्वाद दिया है और उज्जवल भविष्य की कामना की है. महिंद्र पूनिया कहा है कि भारतीय महिला हॉकी टीम ने ओलंपिक में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया था. लेकिन अफसोस की बात यह है कि इंडिया टीम को कोई मेडल हासिल नहीं हो सका. उन्होंने आगे कहा कि ओलंपिक में भले ही टीम को कोई मेडल हासिल ना हुआ हो लेकिन टीम इंडिया देश का दिल जरूर जीता है. पीएम मोदी ने मैच हारने के बावजूद टीम इंडिया के इन खिलाड़ियों के साथ बातचीत की और उन्हें प्रोत्साहित किया.

सभी की दुआएं टीम इंडिया के साथ

सविता और उनकी टीम को ओलंपिक में मिली हार के बाद निराशा तो जरूर हुई थी लेकिन एक बार फिर उत्साह के साथ उन्होंने टूर्नामेंट को लेकर कमर कसना शुरू कर दिया है. महेंद्र पूनिया ने बताया कि सविता इस जिम्मेदारी के मिलने के बाद काफी उत्साहित है और एक नए जोश के साथ इस लीग में उतरेगी उन्होंने कहा कि 26-27 फरवरी को टीम इंडिया का जर्मनी इंग्लैंड मदरलैंड सहित अनेक बड़ी टीमों के साथ मैच होना है. जिसमें उम्मीद है कि टीम इंडिया बेहतरीन प्रदर्शन करेंगी और देश के करोड़ों लोगों की दुआएं टीम इंडिया के साथ हैं.

सविता के संघर्ष की क्या है कहानी?

हरियाणा के सिरसा जिले के छोटे से गांव जोधकां में इस समय जश्न का माहौल है. गांव की लाडली और “द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया” के नाम से मशहूर हॉकी की खिलाड़ी सविता पूनिया को भारतीय महिला हॉकी टीम की कमान सौंपी गई है टोक्यो ओलंपिक के दौरान ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आठ पेनल्टी कॉर्नर बचाकर “द ग्रेट वॉल” बनी सविता पूनिया अब भारतीय महिला हॉकी टीम कप्तान बन गई है. लेकिन आज दुनिया भर में जानी जाने वाली सविता पूनिया का यहां तक का सफर आसान नहीं रहा है तो आइए जानते हैं सविता पूनिया की संघर्षों से भरी सफलता की कहानी-

सविता पूनिया ने 2003-04 में खेलना शुरू किया था. उनके रोल मॉडल उनके दादा है. जब उन्होंने खेलना शुरू किया उस वक्त उनकी मां को गठिया की समस्या थी. ऐसे भी खेल के दौरान उनके मन में हमेशा घर परिवार और मां की चिंता लगी रहती थी. उन्हें लगता था कि मां को मेरी जरूरत है. मैं यहां खेल रहे और वहां मेरे भाई और पापा काम कर रहे हैं. डेढ़ साल तक सविता पूनिया इसको लेकर काफी परेशान रही. खिलाड़ी सविता पूनिया बताती है कि इसके बाद सुंदर सर ने मुझे गोलकीपर बनाने की बात मेरे पिता से की साथ ही मुझे भी फोकस करने को कहा. मेरे मम्मी-पापा चाहते थे कि मैं स्पोर्ट्स में आगे जांऊ.

शुरुआत होती है आसन, लेकिन आगे बढ़ना बेहद मुश्किल

वही सविता पूनिया ने एक साक्षात्कार में बताया है कि “उनका हॉकी काफी संघर्ष से भरा हुआ है. मध्यवर्गीय परिवार से आने की वजह से हर चीज के लिए सोचना पड़ता था. हालांकि इसको लेकर काफी खुद किस्मत थी कि उन्हें अपने परिवार को मनाना नहीं पड़ा क्योंकि मेरे परिवार ने हमेशा से मुझे हॉकी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है. लेकिन शुरुआत करना तो बेहद आसान था लेकिन असली परीक्षा तब होती है जब आगे बढ़ने की कोशिश की जाए.”

कैसे शुरू हुआ गोलकीपर बनने का सफर

उन्होंने आगे बताया कि ” जब मैंने खेलने की शुरुआत की उस वक्त वह काफी डिप्रेशन में थी और करीब डेढ़ साल तक डिप्रेशन के साथ टीम में जगह बनाई. उसके बाद मेरे पहले कोच सुंदर सर ने अपने पिता से बात की और उन्हें बताया कि हाइट काफी अच्छी है और मुझे गोलकीपर बनना चाहिए और यह आगे जाकर भारत के लिए खेलेगी और यहां से मेरे गोलकीपर बनने का सफर शुरू हुआ.

सविता ने बताया है कि एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने के बावजूद भी उन्होंने गोलकीपर बनने की ठान ली लेकिन गोलकीपर बनने के लिए किट की जरूरत है. ग्राउंड में 2 किट थी, जो पहले से ही बुक हो जाया करती थी. एक लंबे इंतजार के बाद 2003 में उनके पिता ने 18000 कि उनके लिए किट खरीदी. वह बताती हैं कि उनके पिता हर महीने ₹9000 कमाते हैं. सविता आगे बताती है कि मैं हरियाणा से हूं और उस पर लड़की को हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित करता था उसको लेकर मैं काफी संकुचित स्वभाव तिथि सार्वजनिक स्थानों पर मुझे असहज महसूस होता था ऐसी भी इतनी भारी गोलकीपिंग केट के साथ दूर-दूर तक यात्रा करना बेहद मुश्किल था.

सिरसा से दिल्ली जाना होता था और मेरे पास कोई सुविधा नहीं थी बस से सफर करना पड़ता था. वही बस ड्राइवर व कंडक्टर किट को देखकर डबल किराया मांगते थे. वही सविता पूनिया बताती है कि 2007 में उनका चयन नेशनल कैंप के लिए हुआ था और इसके 1 साल बाद मुझे नेशनल टीम के लिए चुना गया.

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