हरियाणा के एक ऐसे IAS अफसर की कहानी, जिसे कम सुनाई देने के कारण नही मिली थी चपरासी की नौकरी

चंडीगढ़ । कहते हैं कि कभी भी किसी इंसान का वक्त एक जैसा नहीं रहता, कभी वह ऊपर जाता है तो कभी वापस नीचे आता है. इसलिए हमें कभी भी किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए और उसे कम नहीं आंकना चाहिए. आज हम आपको हरियाणा के एक ऐसे युवक कहानी बताएंगे,  जिससे कभी चपरासी की नौकरी केवल इसलिए नहीं दी गई क्योंकि उसे कम सुनाई देता था. जिस वजह से उसे चपरासी की नौकरी देने की बजाय दुत्कार कर भगा दिया गया था.

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मेवात और पलवल में है डीसी 

मगर इस व्यक्ति ने अपनी मेहनत और काबिलियत से खुद को बुलंदी पर पहुंचाया और आईएएस अफसर बनकर दिखाया. यह कहानी हरियाणा के मेवात या पलवल जिले के डीसी रहे मनीराम शर्मा की है. मनीराम मूल रूप से राजस्थान के अलवर में छोटे से गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता मजदूरी कर किसी तरह से अपने परिवार का गुजारा कर रहे थे और मां दृष्टिहीन थी. वह ख़ुद बहरेपन के शिकार थे. उनके गांव में कोई भी स्कूल नहीं था. जिस वजह से उन्हें पढ़ने के लिए 5 किलोमीटर दूर पैदल चलकर जाना पड़ता था. उन्होंने 12th तक शिक्षा  इसी स्कूल से हासिल की. पढ़ाई में अव्वल होने की वजह से मनीराम ने दसवी और 12 वी में टॉप किया. मनीराम के पिता अपने बेटे की नौकरी के लिए बीडिओ के पास गए और उनसे मनीराम को चपरासी की नौकरी देने के लिए कहा. परन्तु अधिकारी ने मनीराम के बहरा होने का हवाला देते हुए नौकरी देने से साफ मना कर दिया.

जब पिता ने मनीराम को अपने दुख का कारण बताया, तों बेटे ने कहा कि आप दुखी मत हो, मैं और ज्यादा पढूगा  और एक दिन बड़ा अफसर बनकर दिखाऊंगा. उसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए अलवर आ गए. पीएचडी करने के बाद मनीराम ने यूपीएससी करने की ठानी. इससे पहले उन्होंने राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा पास की जिसके बाद उन्हें क्लर्क की नौकरी मिल गई. फिर उन्होंने विश्वविद्यालय में परीक्षा में टॉप किया और नेट की परीक्षा को पास करते हुए लेक्चरर बन गया. उन्होंने 2005, 2006,  2009 में यूपीएससी की परीक्षा  पास की, परंतु हर बार बहरा होने की वजह से उनका सिलेक्शन नहीं हो पाया. इसके बाद उन्होंने अपने कान का ऑपरेशन करवाया जिसमें ₹800000 का खर्च आया. इसके बाद 2009 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी और वह पास हो गए और उन्हें आईएएस के रैंक हासिल हुई.

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