Kartik Purnima 2022: इस दिन मनाई जाएगी कार्तिक पूर्णिमा, जानें इसका महत्व और पौराणिक कथा

ज्योतिष, Kartik Purnima 2022 | कार्तिक पूर्णिमा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है. कार्तिक का यह महीना पूरी तरह से भगवान विष्णु को समर्पित है. कार्तिक मास की पूर्णिमा को वर्ष की सबसे पवित्र पूर्णिमाओं में से एक माना जाता है. कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरा पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है. इस पूर्णिमा को त्रिपुरा पूर्णिमा कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था. इस बार कार्तिक पूर्णिमा 8 नवंबर को मनाई जाएगी. मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु के मत्स्यावतार का जन्म भी हुआ था.

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कार्तिक पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

कार्तिक पूर्णिमा तिथि 7 नवंबर की शाम 4:15 बजे से शुरू हो रही है. इसका समापन 8 नवंबर की शाम 04.31 मिनट पर होगा. उदयतिथि के अनुसार इस बार कार्तिक पूर्णिमा 8 नवंबर को ही मनाई जाएगी.

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

लोग इस दिन सत्यनारायण का व्रत रखते हैं लेकिन चंद्र ग्रहण के कारण इस बार चतुर्दशी तिथि को व्रत रखा जाएगा. इस दिन दान कार्य को सबसे अधिक फलदायी माना जाता है इसलिए लोगों को जरूरतमंद और गरीब लोगों को भोजन और कपड़े दान करना चाहिए. कार्तिक पूर्णिमा के इस शुभ दिन पर देव दिवाली भी बहुत भव्यता के साथ मनाई जाती है. जैन लोग इस दिन को ‘जैन फेस्टिवल आफ लाइट’ के रूप में भी मनाते हैं.

कार्तिक पूर्णिमा का दिन गुरु नानक देव की जयंती का प्रतीक है और इसे गुरु नानक जयंती या गुरुपर्व के रूप में मनाया जाता है और वह गुरु नानक जी की पूजा करने के लिए अपने गुरुद्वारा भी जाते हैं इसलिए यह दिन सभी के लिए एक विशेष महत्व रखता है.

कार्तिक पूर्णिमा पर क्या करें

कार्तिक पूर्णिमा की तिथि भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए विशेष है. इस दिन लोग भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इसके साथ ही इस दिन गंगा नदी में स्नान भी करना चाहिए. गंगा स्नान करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और हर मनोकामना पूरी होती है. इस दिन कुश को हाथ में लेकर स्नान करना शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. साथ ही, आपको सेहत का वरदान भी मिलता है. यही कारण है कि लोग इस दिन पवित्र नदी में कुश स्नान करते हैं.

कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के पौधे को जल अर्पित करना और दीपक जलाना शुभ माना जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के पास दीपक जलाना और तुलसी की जड़ की मिट्टी को तिलक के रूप में माथे पर लगाना शुभ होता है. मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है.

कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान का महत्व

कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान का विशेष महत्व बताया गया है. कहा जाता है कि इस दिन जो कोई भी तुलसी के सामने दीप दान करता है या दीपक जलाता है, महालक्ष्मी निश्चित रूप से प्रसन्न होती है. इसके अलावा कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था. इसी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने रस की रचना की थी. इसके अलावा सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का भी जन्म इसी तिथि को हुआ था. ऐसे में इस पूर्णिमा का समग्र महत्व बताया गया है. तुलसी का अवतार भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही हुआ था. तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है.

कार्तिक पूर्णिमा पूजन विधि

पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर उपवास का व्रत लें और किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करें. इस दिन शिव, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूइया और क्षमा की पूजा करनी चाहिए. कार्तिक पूर्णिमा की रात व्रत रखकर बैल का दान करने से शिव के पद की प्राप्ति होती है. गाय, हाथी, घोड़ा, रथ और घी आदि का दान करने से धन की वृद्धि होती है.

भेड़ दान करने से ग्रह योग के कष्टों का नाश होता है. कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होकर प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत व जागरण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कार्तिक पूर्णिमा का व्रत उपवास किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन और हवन अवश्य करना चाहिए. इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा करनी चाहिए और यमुना जी पर कार्तिक स्नान पूरा कर दीपदान करना चाहिए.

कार्तिक पूर्णिमा कहानी

प्राचीन काल में एक बार, राक्षस त्रिपुरा ने प्रयागराज में एक लाख वर्षों तक घोर तपस्या की थी. उनकी तपस्या के प्रभाव से सभी पदार्थ-चेतन, जीव और देवता भयभीत हो गए. देवताओं ने तपस्या भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. त्रिपुरा दानव के तप से प्रसन्न होकर, ब्रह्मा स्वयं उनके सामने प्रकट हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा.

त्रिपुरा ने वरदान मांगा कि ‘मैं न तो देवताओं के हाथों मरूं, न ही मनुष्यों के हाथों से मरूं’. इस वरदान के बल पर त्रिपुरा निडर होकर अत्याचार करने लगा. इतना ही नहीं उन्होंने कैलाश पर्वत पर भी चढ़ाई की. इसके बाद भगवान शंकर और त्रिपुरा के बीच युद्ध हुआ. अंत में शिव ने भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की मदद से त्रिपुरा को नष्ट कर दिया.

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