किसान आंदोलन: नज़दीक होकर भी दिल्ली से दूर हो गया है हरियाणा, जानिए बड़ी वजह 

नई दिल्ली । किसान आंदोलन के कारण हरियाणा नजदीक होने के बावजूद दिल्ली से दूर हो गया है. हरियाणा और दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के धरने के कारण परिवहन सेवा बुरी तरह प्रभावित है और इससे दिल्ली और हरियाणा के बीच कारोबार पर भी असर पड़ रहा है. तीनों कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ़ 7 माह से चल रहे किसान संगठनों के आंदोलन के कारण दिल्ली से नजदीक होकर भी हरियाणा दूर हो गया है. दिल्ली- चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग के कुंडली- सिंधु बॉर्डर और टीकरी बॉर्डर पर किसान संगठनों के जमावड़े के कारण हरियाणा और दिल्ली के बीच आवागमन बाधित है. आम लोग वैकल्पिक मार्ग अपनाने को मजबूर हैं. जिससे दोनों राज्यों के बीच कारोबार पर भी असर पड़ रहा है.

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कुंडली-सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर सात महीने से डटे किसान संगठनों की वजह से परेशान हैं लोग 

किसानों के धरने से सबसे ज्यादा परेशान धरनास्थल के आसपास के क्षेत्र के लोग हैं. केंद्र व राज्य सरकार के साथ-साथ स्थानीय लोग भी किसान संगठनों से रास्ता खोलने का आग्रह कर चुके हैं. कई बार किसान संगठनों के सदस्यों और स्थानीय लोगों के बीच टकराव भी हुआ है. इसके बावजूद किसान संगठन किसी की एक भी नहीं सुन रहे हैं. निजी व सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था इसके चलते प्रभावित हो रही है. कोरोना संक्रमण काल के साथ ही किसान संगठनों द्वारा दिल्ली हरियाणा मार्ग जाम करने से बसें बंद हैं, और हरियाणा परिवहन विभाग को करोड़ों का घाटा हुआ है.

राष्ट्रीय राजमार्ग छोड़कर वैकल्पिक मार्गों से आवागमन कर रहे हैं दिल्ली और हरियाणा के लोग 

अब जब कोरोना संक्रमण संकट कम हो गया है, तब भी किसान संगठनों के अड़ियल रुख के कारण सार्वजनिक परिवहन सेवा के रूप में हरियाणा रोडवेज की बसों के रूट प्रभावित हैं. हरियाणा सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री मनोहर लाल केंद्रीय मंत्रियों के समक्ष यह परेशानी रख चूके हैं. अब परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा ने एक बार फिर यह आग्रह केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से किया है.

कुंडली और टीकरी बॉर्डर से वैकल्पिक मार्गों का लेना होता है सहारा 

दिल्ली- हरियाणा के बीच आवागमन के लिए लोग वैकल्पिक मार्गों का सहारा ले रहे हैं. बड़े वाहन तो कुंडली, गाजियाबाद, पलवल एक्सप्रेस वे या फिर खरखौदा पर ओचंडी बॉर्डर से हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के दूसरे शहरों से आवागमन करते हैं. सोनीपत के पास राजमार्ग के कुंडली बॉर्डर पर करीब पांच किलोमीटर क्षेत्र और बहादुरगढ़ के पास करीब 15 किलो मीटर क्षेत्र में किसानों ने अपने अस्थायी आशियाने बना लिए हैं. इससे इन क्षेत्रों के लोग ही नहीं, बल्कि दिल्ली चंडीगढ़ के बीच आवागमन करने वाले बड़े वाहन भी प्रभावित हो रहे हैं.बड़े वाहनों को तो इन बॉर्डर के बंद होने के औसतन 50 किलोमीटर ज्यादा चलना पड़ता है. छोटे वाहन बहादुरगढ़ से लगते दिल्ली के गांव झडोंता, निजामपुर, बुरारी सहित नरेला का सहारा लेते हैं. स्थानीय लोगों को छोड़ दें तो दूसरे प्रदेशों के निजी वाहन चालकों में तो इन वैकल्पिक मार्गों पर भी असुरक्षा की भावना ही रहती है.

कुंडली और टीकरी बॉर्डर पर किसान संगठनों के आंदोलन से निजी ही नहीं, बल्कि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था भी ठप रही है. लंबे रूट की बसों को भी कुंडली, गाजियाबाद पलवल एक्सप्रेस वे से डाइवर्ट करने से भी विभाग को नुकसान है. क्योंकि 130 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेस वे पर बीच में कोई सवारी ही नहीं मीलती. किसान संगठनों से बार-बार केंद्र और राज्य सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग से हटने का आग्रह किया है. इन बॉर्डर के नजदीक स्थानीय गांव व शहर के लोग भी परेशान हैं, लेकिन किसान संगठन अपनी जिद पर अड़े हैं. हमने राज्य सरकार के माध्यम से केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से इस दिशा में सार्थक कदम उठाने का आग्रह किया है.

बता दें दिल्ली और हरियाणा की सीमा पर पिछले छ-सात महीनों से किसान आंदोलन चल रहा है. ऐसे में किसान दिल्ली की सीमा पर बैठे हुए हैं, उनका कहना है कि जब तक तीन नए कृषि कानूनों की वापसी नहीं होगी, हमारी भी वापसी नहीं होगी. इस दौरान कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और किसान यूनियन के बीच कई बार वार्ता हुई, लेकिन अभी तक कोई भी रास्ता नहीं निकल सका है. किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार बीमार पड़ी है, हम उसके लिए दवाई बना रहे हैं. और इस दवाई का असर धीरे-धीरे पड़ेगा. वो यह भी कहते हैं कि हमारी दवाई का असर पश्चिम बंगाल में देखने को मिला, और अब उत्तर प्रदेश में दिखेगा. टिकैत भारतीय जनता पार्टी पर तंज कसते हुए कहते हैं कि किसान की बीमारी का इलाज संसद में होगा, और सरकारी की बीमारी का इलाज़ जनता यानी किसान के पास होगा.

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