पाकिस्तान में सबकुछ लुटा कर हिंदुस्तान आया परिवार बना मिसाल, आज 300 परिवारों को दें रहा रोजगार

रेवाड़ी, Independence Day Special | साल 1947 में हुएं भारत- पाकिस्तान विभाजन का जिक्र करते ही आज भी कई परिवार सहम उठते हैं और उस समय इन लोगों ने विभाजन की त्रासदी का जो दर्द झेला था वो आज भी इनके दिमाग में ताज़ा है. विभाजन के समय बहुत से लोगों को घर और देश छोड़ना पड़ा और खाली पेट दूसरे ठिकाने की तलाश में चल पड़े थे. इन्हीं परिवारों में से एक तनेजा परिवार था जो उस समय खाली हाथ पाकिस्तान से भारत आया था लेकिन विधाता ने हाथ की लकीरों में बहुत कुछ लिखा था और आज यह परिवार 300 से ज्यादा परिवारों की रोजी- रोटी का जरिया बना हुआ है.

Nandlal Taneja Rewari

साल 1947 में जब भारत- पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान के लायलपुर से चल कर ठाकुर दास तनेजा अपने छोटे भाई नन्द लाल तनेजा के साथ पहले अमृतसर और उसके बाद रेवाड़ी पहुंचे थे. यहां पर उन्होंने एक छोटी सी किराना की दुकान से अपना जीवनयापन शुरू किया था और आज इनके बेटे शहर में गाड़ियों से लेकर दोपहिया वाहनों तक की फ्रेंचाइजी चला रहे हैं.

कड़ी मेहनत लाई रंग

बंटवारे के वक्त का जब भी जिक्र होता है तो इस परिवार की आंखों से आंसू टपकने लगते हैं. इस परिवार के बेटे दलीप और प्रदीप तनेजा बताते हैं कि पाकिस्तान के लायलपुर में उनका किराने का कारोबार था और पूरा परिवार सुख- समृद्धि से जीवन व्यतीत कर रहा था लेकिन बंटवारे की आग ने सब कुछ जला कर राख कर दिया. भारत- पाकिस्तान का बंटवारा पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं के लिए आफत बनकर आया.

एक कमरे में पूरे परिवार का गुजारा

तनेजा परिवार ने बताया कि बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से घर की महिलाओं को हिंदुस्तान सुरक्षित लेकर आने के लिए उन्होंने जो मुसीबतें झेलनी पड़ीं थीं, उसे याद कर आंखों के सामने एक खौफनाक मंजर आ जाता है. ट्रेन में महिलाओं को किसी तरह छिपाते हुए पहले अमृतसर पहुंचे तथा वहां से सरकार ने रेवाड़ी भेज दिया. रेवाड़ी में सरकार ने उन्हें एक कमरे का मकान दिया और पूरे परिवार ने तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए उसी कमरे में गुजारा किया.

2007 में आई कंपनी की डीलरशिप

तनेजा परिवार ने बताया कि शुरुआत में रेलवे रोड़ पर किराने की दुकान से अपना काम शुरू किया और धीरे- धीरे काम बढ़ने लगा तो कारोबार भी फलने- फूलने लगा. साल 1991 में सबसे पहले स्कूटर बिक्री की डीलरशिप मिली और उसके बाद साल 2007 में एक नामी कार कंपनी की डीलरशिप मिली. दलीप तनेजा ने बताया कि वर्तमान में 300 से ज्यादा कर्मचारियों को उनके पास रोजगार मिला हुआ है.

राष्ट्र की उन्नति में योगदान है मकसद

दलीप तनेजा ने बताया कि आज हिंदुस्तान आए 75 साल हो चुके हैं. पिताजी और ताऊ जी खाली हाथ भारत आए थे लेकिन उन्होंने अपने हौसले को बुलंद रखा और अपने कारोबार को आगे बढ़ाते रहे. हम लोगों ने भी उनकी राह पर चलते हुए कारोबार को और अधिक विकसित किया और आज हमारे बच्चे भी इसी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने बताया कि बंटवारे का दर्द आज भी जख्मों को हरा कर देता है लेकिन हमने अपने कठिन परिश्रम से जीवन में आगे बढ़ना सीख लिया है.

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