जानिए चंडीगढ़ पर किसका है हक, 5 दशक बाद भी इस मामले को लेकर क्यूं छिड़ा है घमासान

चंडीगढ़ । राजधानी चंडीगढ़ पर हक को लेकर पिछले डेढ़ दशक से पंजाब और हरियाणा के बीच विवाद बना हुआ है और यह विवाद सुलझने की बजाय और अधिक उलझता ही जा रहा है. इस विवाद ने और अधिक तूल तब पकड़ लिया जब मोदी सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश में कर्मचारियों के लिए पंजाब सर्विस रूल्स के बजाय सेंट्रल सर्विस रूल्स अधिसूचित किए. वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार ने एक दिन का विशेष विधानसभा सत्र बुलाकर चंडीगढ़ पर हक को लेकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया. पंजाब व हरियाणा के अलावा हिमाचल प्रदेश ने भी चंडीगढ़ पर अपने हक को लेकर दावा ठोक दिया.

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चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी कब और कैसे बनी

हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच हुए विभाजन के बाद हिंदुस्तान के हिस्से में आए पंजाब की अस्थाई राजधानी शिमला बनाई गई थी. उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पंजाब की एक अलग पहचान बनाने के लिए इसकी राजधानी के रूप में एक आधुनिक शहर विकसित करने के पक्ष में थे और इसी परिपेक्ष्य में चंडीगढ़ की कल्पना की गई थी.

साल 1966 में पंजाब से हरियाणा राज्य का गठन हुआ तो चंडीगढ़ हरियाणा को सौंप दिया गया. जब इसका जोरदार विरोध हुआ तो केन्द्र सरकार ने चंडीगढ़ को नए केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया और इसे दोनों राज्यों की राजधानी घोषित कर दिया.

• मार्च 1948 में, पंजाब सरकार ने केंद्र के परामर्श से नई राजधानी के स्थल के रूप में खड्ड तहसील को चुना और यहां 22 गांवों को अधिग्रहण किया गया. सरकार ने उनके विस्थापित निवासियों को मुआवजा दिया.

• 21 सितंबर, 1953 को पंजाब की राजधानी को आधिकारिक तौर पर शिमला से चंडीगढ़ ले जाया गया और तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 7 अक्टूबर, 1953 को नई राजधानी का उद्घाटन किया. हरियाणा राज्य के गठन से पहले तक चंडीगढ़ पूर्ण रूप से पंजाब की राजधानी बना रहा.

फिर इस तरह हुआ बंटवारा

चंडीगढ़ को दोनों राज्यों पंजाब और हरियाणा की सामान्य राजधानी के रूप में विकसित किया गया. संपत्तियों को राज्यों के बीच 60:40 के अनुपात में बांटा गया था और हरियाणा से कहा गया था कि वह पांच साल तक चंडीगढ़ में कार्यालय और आवासीय आवास का उपयोग तब तक करे जब तक कि वह अपनी नई राजधानी नहीं बना लेता. तत्कालीन केन्द्र सरकार ने हरियाणा को 10 करोड़ रुपये का अनुदान और नई राजधानी के निर्माण के लिए समान राशि के ऋण की भी पेशकश की थी.

राजधानी बनते ही चंडीगढ़, पंजाब में शामिल हो जाएगा

केंद्र सरकार ने तब दलील दी थी कि उसने चंडीगढ़ को विभाजित करने के खिलाफ फैसला इसलिए किया है कि इससे चंडीगढ़ शहर की खूबसूरती, वास्तुकला और ले-आउट प्रभावित होगा. लेकिन तब तक इंटरनेशनल लेवल पर चंडीगढ़ अपनी अलग ही पहचान बना चुका था. केन्द्र सरकार ने कहा था कि हरियाणा जितनी जल्दी अपनी राजधानी बना लेगा, चंडीगढ़ उतनी ही जल्दी पंजाब में शामिल हो जाएगा.

26 जनवरी 1986 को सौंपना था

24 जुलाई 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली नेता हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच राजीव-लोंगोवाल समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. अन्य बातों के अलावा, केंद्र ने चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने पर सहमति बनी और 26 जनवरी, 1986 को वास्तविक हस्तांतरण की तारीख तय की गई थी. हालांकि, समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक महीने से भी कम समय के बाद अकाली नेता लोंगोवाल को आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया था.

ये प्रस्ताव आए

• 18 मई 1967 को आचार्य पृथ्वी सिंह आजाद द्वारा पहला प्रस्ताव लाया गया.

• 19 जनवरी 1970 को चौधरी बलबीर सिंह द्वारा दो प्रस्ताव लाए गए. उस समय पंजाब में गुरनाम सिंह की सरकार का शासनकाल था.

• 7 सितंबर 1978 को एक प्रस्ताव लाया गया, तब पंजाब में प्रकाश सिंह बादल की सरकार थी.

• 31 अक्टूबर 1985 को बलदेव सिंह मान एक प्रस्ताव लेकर आए, तब पंजाब में सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार थी.

• 23 दिसंबर 2014 को गुरदेव सिंह झूलन एक प्रस्ताव लेकर आए, तब प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री थे.

• आम आदमी पार्टी की सरकार मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में शुक्रवार को फिर प्रस्ताव लेकर आई .

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