फतेहाबाद के इस गांव में सवा 4 लाख रुपए में बिकी देशी गाय की बछड़ी, 2100 रुपए की माला व पैर छूकर किया विदा

फतेहाबाद । हिंदु धर्म में गाय की पूजा सदियों से होती आ रही है. पहले के मुकाबले भले ही अब देशी गायों की अहमियत व कीमत कम हो गई हों लेकिन पहले हरियाणा नस्ल की गाय युगों से भारतीय जीवन शैली का हिस्सा रहीं हैं. अब भी कुछ लोग ऐसे हैं जो इस नस्ल में सुधार कर नई मिसाल कायम कर रहे हैं. ऐसा ही एक उदाहरण हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गांव गोरखपुर से सामने आया है जहां गांव के लीला राम पुत्र रामकुमार ने अपनी देशी नस्ल की गाय की बछड़ी को 4 लाख 21 हजार रुपए में बेचकर मिसाल कायम की है.

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गाय के प्रति लीला राम की श्रद्धा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब बिहार के गांव खुटैना जिला मधुबनी निवासी यादवेन्द्र किशोर सिंह गाय को ले जाने लगे तो लीला राम ने गाय के गले में 2100 रुपए की माला डालकर व पैर छूकर विदा किया. लीला राम ने बताया कि उन्हें शुरू से ही देशी गाय पालने का शौक रहा है. उन्होंने कहा कि एक दोस्त की सलाह से प्रेरित होकर अपनी गाय को नंदी अर्जुन का सिमन भ्रूण किया, जिससे इस सुंदर बछड़ी ने जन्म लिया. इसका नाम इन्होंने प्रीति रखा.

प्रीति की मां मोना 13 लीटर दूध दिया करतीं थीं जो चर्चा का विषय था. अब ये बछड़ी प्रीति 16 महीने 10 दिन की थीं जो शुक्रवार को 4 लाख 21 हजार रुपए में बिकी है. लीला राम ने बताया कि देशी गाय का खर्चा भैंस के मुकाबले चौथे हिस्से का है. विदेशी गायों के मुकाबले देशी गाय का खर्चा तीसरे हिस्से का है. गाय का दूध भी भैंस के दूध के मुकाबले बहुत ही पौष्टिक होता है. फिलहाल वह अपने पास 10 देशी गायों का पालन पोषण कर रहे हैं.

देशी गाय का दूध ए-2 प्रकार का दूध होता है जो शिशु से लेकर वयस्कों तक मधुमेह से लड़ने में मददगार साबित होता है. इस तथ्य को वैज्ञानिकों ने भी प्रमाणित किया है. देशी दवाइयां बनाने में भी गौमूत्र का उपयोग होता है. देशी गाय का पालन कई वजहों से लाभदायक साबित हो रहा है लेकिन आज भी कुछ लोग जानकारी के अभाव में देशी गायों को घाटे का सौदा समझकर घर से बाहर निकाल रहे हैं.

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