चलो दीप जलाएं वहां, आज भी अंधेरा है जहाँ :दीपक शर्मा

पंचकुला | विमुक्त घुमंतू जनजाति कल्याण संघ हरियाणा के द्वारा जिला पंचकूला में 69वां विमुक्ति दिवस मनाया गया. इस कार्यक्रम का संचालन विमुक्त घुमन्तु जनजाति कल्याण संघ के जिला संयोजक संत कुमार गड़रिया ने किया. कार्यक्रम में बाजीगर, अहेरिया, गाड़ी लोहार, बावरिया, जंगम जोगी, बंजारा, नट, सांसी आदि समाजों के प्रमुख लोगों ने भाग लिया. इस प्रोग्राम में समाज के सभी महापुरुषों के बारे में बताया कि वह कितने वीर थे और उन्हें आजादी के लिए अपनी क्या भूमिका निभाई और 1871 में लगे क्रिमिनल ट्राइब एक्ट जैसे काले कानून के बारे में भी बताया. जिसमें मुख्य वक्ता श्री दीपक शर्मा पूर्व जिलाध्यक्ष भाजपा, श्री नरेंद्र डाबला विस्तारक, श्री राज कुमार मक्कड़ पूर्व डिप्टी एडवोकेट जनरल हरियाणा व श्री जसमेर सिंह बंजारा रहे.

Meeting

विस्तारक नरेंद्र डाबला जी ने सभी जातियों को सामूहिक रूप से कार्य करने की प्रेरणा देते हुए संगठन की शक्ति के बारे में बताया तो उपस्थित पूर्व जिलाध्यक्ष दीपक शर्मा ने सरकार की हर योजना को इन लोगो तक पहुचाने की बात कही. सभी लोगो ने चिंता ज़ाहिर की कि आज़ादी के 73 बर्ष बाद भी ये जातियां जहां शिक्षा, सफाई, स्वच्छता, स्वास्थ्य, आधारकार्ड, राशन कार्ड, वोट कार्ड, पैन कार्ड, जच्चा- बच्चा, खाद्य सुरक्षा और दूसरी जन कल्याण की योजनाओं से दूर हैं. साथ ही, दूसरी तरफ इनका राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रतिनिधित्व भी ना होने के कारण आज भी लावारिसों की जिंदगी जीने को- मजबूर हैं.

जसमेर सिंह बंजारा ने कहा कि बेशक हरियाणा सरकार ने इनके उत्थान के लिए कल्याण बोर्ड़ का गठन किया है परन्तु पहले से चांदी कूटते आ रहे समाजो के कुछ लोग, नेता, अधिकारी और कर्मचारी आज इनके लिये किये जा रहे सरकार के प्रयासों में रोड़ा बनने से बाज नहीं आते. इन जातियों की जनसंख्या हरियाणा में 23 लाख के करीब है और विमुक्त घुमन्तु जनजाति कल्याण संघ इन जातियों की आल राउंड डेवलोपमेन्ट के लिए बचनबद्ध है. ये जातियां हिंदुस्तान की आजादी और धर्म रक्षा में अग्रणी भूमिका में रही हैं.

चाहे घर वार, खेत खलिहान छोड़ कर जंगलों, मरुस्थलों, नदियों में रहने को मजबूर हुए पर धर्म परिवर्तन नही किया व संस्कार और स्वाभिमान के मामले में समझौता नहीं किया. भले ही देश 1947 में आजाद हो गया पर ये जातियां 31 अगस्त 1952 को क्रिमिनल एक्ट से आजाद हुई. लेकिन, सवैधानिक संरक्षण नहीं मिला क्योंकि सविधान तो 1950 में बन कर लागू हो गया पर इनका प्रतिनिधित्व ना होने के कारण आज तक संशोधन भी नहीं हो सका. लेकिन अब राष्ट्रीय नीति आयोग की सिफारिश पर और इन जातियों के राष्ट्र व्यापी संगठनों ने पूरी ताल ठोक दी है.

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